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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २५६
दोय घड़ी निज-रूप रमण कर, जग बिसरावेला।
____धर्म-ध्यान में लीन होय, चेतन सुख पावेला ।। करलो ।। ५ ।। सामायिक से जीवन सुधरे, जो अपनावेला।
निज सुधार से देश, जाति सुधरी हो जावेला ।। करलो ।। ६ ।। गिरत-गिरत प्रतिदिन रस्सी भी, शिला घिसावेला।
करत-करत अभ्यास मोह को, जोर मिटावेला ।। करलो ।। ७ ।।
( १५ )
जीवन-उत्थान गीत (तर्ज-करने भारत का कल्याण-पधारे वीर प्रभु भगवान्....)
करने जीवन का उत्थान, करो नित समता रस का पान ।। टेर ।। सामायिक की महिमा भारी, यह सबको साताकारी ।
_इसमें पापों का पच्चखान, करो नहीं आत्म-गुणों की हान ।।१।।
नित प्रति हिंसादिक जो करते, त्याग को मान कठिन जो डरते ।
घड़ी दो कर अभ्यास महान्, बनाते जीवन को बलवान् ।। २ ।।
चोर केशरिया ने ली धार, हटाये मन के सकल विकार ।
मिलाया उसने केवल ज्ञान, किया भूपति ने भी सम्मान ।। ३ ।।
मन की सकल व्यथा मिट जाती, स्वानुभव सुख-सरिता बह जाती।
होता उदय ज्ञान का भान, मिलाते सहज शान्ति असमान ।। ४ ।।
जो भी गए मोक्ष में जीव, सबों ने दी समता की नींव।
उन्हीं का होता है निर्वाण, यही है भगवत् का फरमान ।। ५ ।।
कहता 'गजमुनि' बारम्बार, करलो प्रामाणिक व्यवहार ।
हटायो मोह और अज्ञान, मिले फिर अमित सुखों की खान ।। ६ ।।
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