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________________ • २५८ तन धन परिजन सब सपने हैं, नश्वर जग में नहीं अपने हैं । अविनाशी सद्गुण पाना हो, तो .... सा० ।। १ ।। चेतन निज घर को भूल रहा, पर घर माया में झूल रहा । सचिद् आनन्द को पाना हो, तो ....सा० ॥ २ ॥ विषयों में निज गुण मत भूलो, अब काम क्रोध • मत भूलो। समता के सर में नहाना हो, तो.... सा० ।। ३ ।। तन पुष्टि - हित व्यायाम चला, मन-पोषण को शुभ ध्यान भला । आध्यात्मिक बल पाना चाहो तो....सा० ॥ ४ ॥ व्यक्तित्व एवं कृतित्व सब जग-जीवों में बंधु भाव अपनालो तज के वैर भाव । सब जन के हित में सुख मानो, तो.... सा० ।। ५ ।। निर्व्यसनी हो, प्रामाणिक हो, धोखा न किसी जन के संग हो । संसार में पूजा पाना हो, तो .... सा० ॥ ६ ॥ साधक सामायिक संघ बनें, सब जन सुनीति के भक्त बनें । नर लोक में स्वर्ग बसाना हो, तो... सा० ।। ७ ।। ( १४ ) सामायिक-गीत Jain Educationa International ( तर्ज - नवीन रसिया ) करलो सामायिक रो साधन, जीवन उज्ज्वल होवेला || टेर ।। तन का मैल हटाने खातिर, नित प्रति नहावेला । मन पर मल चहुँ ओर जमा है, कैसे धोवेला ।। करलो ।। १ ।। बाल्यकाल में जीवन देखो, दोष न पावेला । मोह माया का संग किया से, दाग लगावेला || करलो ।। २ ।। ज्ञान-गंग ने क्रिया धुलाई, जो कोई धोवेला । काम, क्रोध, मद, लोभ, दाग को दूर हटावेला || करलो ।। ३ ।। सत्संगत और शान्त स्थान में, दोष बचावेला । फिर सामायिक साधन करने, शुद्धि मिलावेला ।। करलो ।। ४ ।। For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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