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अहिंसा के प्रचार-प्रसार में प्राचार्य श्री का योगदान
0 श्री हसमुख शांतिलाल शाह
प्रचार-प्रसार स्वयं के आचार से ही ठीक ढंग से हो सकता है। प्राचार्य श्री ने अहिंसा महाव्रत का स्वीकार १० साल की लघु आयु में ही करके जैनसाधुत्व की दीक्षा ग्रहण कर ली।
शुभ-कार्य में प्रवृत्त होने से हिंसा से निवृत्ति हो जाती है और स्वाध्यायसामायिक इन दोनों से अहिंसा का पालन होता है, इसलिये आचार्य श्री ने स्वाध्याय-सामायिक को महान् बताकर उस प्रवृत्ति पर भारी जोर दियाफरमान किया और उसके लिये संगठनों/मंडलों की रचना करने की प्रेरणा देकर नियमित रूप से स्वाध्याय-सामायिक की व्यापकता द्वारा हिंसा से निवृत्त रहने का घनिष्ठ रूप से/सघनता से प्रचार-प्रसार किया।
स्वाध्याय-सामायिक के साथ-साथ अन्य शुभ-प्रवृत्तियों में रत होने के लिये आपने सर्वहितकारी समाजसेवी संस्थाओं की रचना करने की प्रेरणा दी। जिसके फलस्वरूप कई आत्माओं को पदाधिकारी एवं सदस्य बनकर शुभ कार्यों में प्रवृत्त होने से हिंसा से निवृत्त होने का अवसर मिला। उनमें तीन संस्थाएँ जीवदया की प्रवृत्ति के लिये ही निम्नत: गठित की गईं :
(१) जीवदया, धर्मपुरा । (२) जीवदया अमर बकरा ठाट, भोपालगढ़ । (३) पशु क्रूरता निवारण समिति, जयपुर।
हिंसा-विरोधक संघ, अहमदाबाद को भी आपका मार्गदर्शन/सहयोग मिलता रहा और आपकी प्रेरणा से जीवदया प्रेमियों का भी सहयोग मिलता रहा।
आपकी प्रेरणा से ८५ आत्माओं ने अहिंसा महाव्रत को स्वीकार करके जैन-दीक्षा ग्रहण की, जिनमें ३१ मुनिराज और ५४ महासतियां जी समाविष्ट हैं।
आपने ३० से भी अधिक ग्रंथों का निर्माण किया, जिनके पठन के समय पाठक हिंसा से मुक्त रहते हैं।
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