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________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. . २४३ आपने सतारा (महाराष्ट्र) में स्थंडिल जाते समय काले नाग को मारते मानव-समुदाय को ललकार कर नाग को मुक्त कराके अपनी झोली में लेकर नवकार मंत्र सुनाकर जंगल में छोड़ दिया। ऐसा आत्म-विश्वास, सर्वजीवों के प्रति मैत्री, करुणा और अहिंसा भाव को आत्मसात् करने वाले प्राचार्य श्री में ही हो सकता है न ? राजस्थान में मारवाड़ अकाल सहायता कोष की स्थापना आपकी प्रेरणा से हुई । इसके माध्यम से २७ करोड़ के फंड से ५ लाख पशुओं की रक्षा की गई। आचार्य श्री ने सैलाना में १९६५ में अपने प्रवचन में बताया कि भगवान महावीर ने साधु और गृहस्थ के अहिंसा के आचार के भेद बताये तो आनन्द ने गृहस्थ की जान-बूझकर दुर्भाव से हिंसा नहीं करने की प्रतिज्ञा स्वीकार कर ली। आपने पीपाड़ के प्रवचन में फरमाया कि संयम और ज्ञान से मन की हिंसा रोकने का कार्य सरल होता है इसलिए ऐसा करें। सन् १९८८ में सवाईमाधोपुर और जयपुर के बीच में निवाई के पास के गांव में हो रही पशुबलि को आपने अपने उपदेश से सदा के लिए बन्द करवा दिया। आपके सुदीर्घ जीवन के अहिंसा-पालन से अभिभूत होकर निमाज में आपके संथारा-स्वीकारने पर कसाइयों के नेता श्री हरिदेव भाई ने निर्णय किया और पालना भी की कि जब तक संथारा होगा तब तक निमाज में कोई भी पशुवध नहीं होगा और मांस का त्याग मुसलमान परिवार भी करेंगे। आचार्य श्री के प्रभाव से उनके महाप्रयाण के अवसर पर राजस्थान सरकार ने भी सारे राज्य में बूचड़खाने बन्द करवाये। __ प्राचार्य श्री की प्रेरणा से अनेक जीवदया प्रेमी जीवदया की प्रवत्ति में जुट गये हैं, जिनमें गृहस्थों में जयपुर निवासी श्री सी. एल. ललवानी और श्री पारसमल जी कुचेरिया प्रमुख हैं। __ आचार्य श्री ने अपने आचार/आचरण द्वारा अहिंसा के पालन प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया, ऐसा योगदान देने के लिये संनिष्ठ सतत प्रयास करने की हमें प्रेरणा-सामर्थ्य प्राप्त हो जिससे हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजली अर्पण कर सकें और सभी जीवों को शाश्वत सुख दिलाने में निमित्त बनकर अपना कर्म-क्षय कर सकें, इस दिशा में प्रगति कर सकें, ऐसी अभ्यर्थना । -मानद मंत्री, हिंसा विरोधक संघ, ४ वंदन पार्क, स्टेशन के समीप, मणिनगर (पूर्व) अहमदाबाद-३८० ००८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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