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________________ . २४० • विधा, नई टेकनीक का प्रयोग किया । संस्थानों के उपरांत आप उनमें सर्वथा प्रसंग - निसंग रहते, संस्थाएँ अपने ही बलबूते पर स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं । इससे संस्थाएँ अधिक अच्छा और सुन्दर कार्य निष्पादित करती हैं तथा प्रेरक का अधिक समय संस्थाओं के रगड़े-झगड़े और व्यवस्थाओं में व्यय नहीं होता । यह प्राचार्य श्री की अनुकरणीय देन है । व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतिहास के क्षेत्र में स्था० समाज पूर्णतया प्राध्यात्मिक समाज रहा है । कठोर क्रिया पालन, उग्र तपस्या, आत्मचिंतन, श्रात्मध्यान, आत्मोत्थान ही इसका प्रमुख लक्ष्य रहा है। हिंसा पालन में सतत जागरूकता इसका ध्येय है । अतः इतिहास लेखन की ओर इस समाज का ध्यान कुछ कम रहा । इसलिए इस समाज में यह खटकने वाली कमी रही है । भगवान महावीर से लेकर इसकी परम्परा तो अविच्छिन्न चली आ रही है पर उसका क्रमबद्ध लेखन और विगत - वार माहिती नहीं थी । प्रभु वीर पट्टावनी जैसे प्रयत्न हुए थे परन्तु फिर भी काफी कमी रही । आचार्य श्री ने इस कमी को महसूस किया । लगभग एक युग के भागीरथ प्रयास और ध्येयलक्षी सतत, पुरुषार्थं से आपने 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' निष्पक्ष दृष्टि से लिखकर जैन समाज के इतिहास में अद्भुत, अनुपम, अद्वितीय, ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न किया । 'जैन प्राचार्य चरितावली', 'पट्टावली प्रबन्ध संग्रह' आदि ग्रन्थ भी आपने नवीन ऐतिहासिक खोज के आधार पर लिखे । इतिहास के क्षेत्र में यह आपकी अद्भुत अपूर्व देन है । आगम- प्रेम - आगम ज्ञान के प्रचार-प्रसार में आपको विशेष आनन्द प्रता था । 'नन्दी सूत्र' आपका सर्वाधिक प्रिय सूत्र था । उत्तराध्ययन, नन्दी, प्रश्न व्याकरण, अन्तगड़, दशवैकालिक आदि सूत्रों का सरल हिन्दी भाषा में व्याख्या विश्लेषणयुक्त अनुवाद प्रकाशित कराये जो बहुत ही लोकप्रिय हुए । इनसे प्रेरणा पाकर अन्यत्र भी काफी प्रयत्न प्रारम्भ हुए । सामायिक स्वाध्याय - सामायिक - स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार में तो आपने रात-दिन एक कर दिया । आपके प्रयास के फलस्वरूप हजारों नये स्वाध्यायी बने हैं और आप ही की प्रेरणा से लाखों सामायिकें प्रतिवर्ष नई होने लग गई हैं । कोई भी आपके दर्शन करने आता था तो प्राप प्रथम प्रश्न यही पूछते थे कि स्वाध्याय हो रहा है या नहीं ? कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं आदि सांसारिक बातों की तरफ आपका ध्यान था ही नहीं । सामायिक - स्वाध्याय के प्रचारप्रसार में तो आपने अपना जीवन ही दे दिया । समाज को आपकी यह देव प्रति उल्लेखनीय है । Jain Educationa International करुणासागर दीनदयाल - प्राचार्य भगवन्त ने इस प्रकार ज्ञान और क्रिया के क्षेत्र में नई-नई बुलन्दियों को तो छुप्रा ही, इसके साथ-साथ उनके हृदय में For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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