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• व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संत-सतियों का पूर्ण आदर-सत्कार व भक्ति करते हैं जो शुद्धाचारी हैं और रत्नत्रय की साधना शासनपति भ० महावीर की आज्ञा में रहकर करते हैं।
(५) चारित्रिक साधना की विशिष्ट देन-प्राचार्य प्रवर दस वर्ष की लघुवय में दीक्षा ले अहर्निश रत्नत्रय की साधना में दृढ़ता के साथ ७१ वर्ष तक रत रहे । आप न केवल ज्ञानाचार्य थे वरन् कलाचार्य एवं शिल्पाचार्य भी थे। आप जीवन जीने की सच्ची कला व जीवन निर्माण की अद्भुत शक्ति के धारक थे। अखंड बाल ब्रह्मचारी, उत्कृष्ट योगी तथा निर्दोष निर्मल तप-संयम की आराधना व पालना से आप में अद्वितीय आत्मशक्ति विकसित हो गई थी, जिसे लोक भाषा में 'लब्धि' कहते हैं। इसी कारण आपने जब कभी जिस पर भी तनिक दया दृष्टि की तो उसकी मनोकामवा शीघ्र पूर्ण हो जाती थी। इसके अनेक उदाहरण हैं । आप पर उर्दू कवि की यह उक्ति सर्वथा लागू होती थी
'फकीरों की निगाहों में अजब तासीर होती है ।
निगाहें महर कर देखें तो खाक अक्सीर होती है ।।'
आपकी विशिष्ट साधना की लब्धि से सैंकड़ों भक्तों के दुःख बिना किसी जंत्र-मंत्र के स्वतः दूर हो जाते थे जिससे जिनशासन की महती प्रभावना हुई है। ऐसी चामत्कारिक सत्य घटनाओं के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं ।
- कुछ प्रमुख घटनाओं का संकेत रूप में उल्लेख यहाँ किया जाता है। जैसे सुदूर रहकर अप्रत्यक्ष में मांगलिक से ही नेत्रज्योति का पुनरागमन होना, जिनके लिए डॉक्टर विशेषज्ञों ने चिकित्सा हेतु असमर्थता व्यक्त कर दी, ऐसी भयंकर दुसाध्य बीमारियों से भी मात्र आपके मांगलिक श्रवण से बिना ऑपरेशन या चिकित्सा के ठीक होना । रास्ता भटकते यात्रियों के द्वारा प्रापको स्मरण करने पर तत्काल उन्हें मार्गदर्शक मिलता और मार्ग बताकर उसका गायब हो जाना, रजोहरण व मांगलिक से सर्प-जहर उतरना, संतों के संकट दूर होना, सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही पशुबलि को सामान्य कार्यकर्ता के माध्यम से ही सदा के लिए रुकवा देना । नागराज के प्राण बचाना व उसका परम भक्त हो पूनः-पुनः प्राचार्य श्री की सेवा में प्रगट होना तथा अंतिम समय पर्यंत तक उसके द्वारा भक्ति प्रदर्शित करना इत्यादि-२ ।
__ प्राचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म. सा. की महान् और आदर्श साधना से समाज, देश व विश्व को जो उपलब्धियाँ मिली हैं, उनका संक्षिप्त वर्णन यथा जानकारी यहाँ किया गया गया है। इनसे विश्व के सभी प्राणी वर्तमान में ही नहीं भविष्य में भी लाभान्वित होते रहें, यही मंगल भावना है।
-डागा सदन, संघपुरा, टोंक (राजस्थान)
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