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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
प्राचार्य प्रवर की प्रेरणा से अनेक पारमाथिक औषधालय भी अनेक स्थानों पर स्थापित हुए हैं जिनमें नित्य सैंकड़ों बिमार निःशुल्क दवा आदि का लाभ उठाते हैं। आपने पशु-बलि जहाँ भी होती देखी, उसको अपने चारित्रिक बल से रुकवाया। उदाहरणार्थ टोंक जिले की तहसील निवाई के मूंडिया ग्राम में सैंकड़ों वर्षों से बिणजारी देवी मन्दिर में प्रतिवर्ष रामनवमी को पाड़े की बलि होती थी। आपकी सद्प्रेरणा से वह अब सदा के लिए बन्द हो चुकी है।
(३) निर्व्यसनी व प्रामाणिक समाज का निर्माण-प्राचार्य प्रवर ने व्यसन एवं अनैतिकता को समाज से दूर करने हेतु अपनी आत्म-साधना के साथ२ इसके लिए भी एक अभियान चलाया। जो भी आपके संपर्क में आता उसे निर्व्यसनी एवं प्रामाणिक जीवन यापन करने को प्रेरित करते और तत्सम्बन्धी संकल्प भी कराते । विशेषकर जब भी आपके सान्निध्य में विद्वत् संगोष्ठी होती तो उसमें सम्मिलित होने वाले सभी विद्वानों को तत्सम्बन्धी नियम की प्रसादी देते थे। जैसे-(i) धूम्रपान न करना (ii) नशा न करना (iii) मांस, अंडे आदि अभक्ष्य सेवन न करना (iv) रात्रि भोजन न करना (v) जमीकंद का सेवन न करना (vi) रिश्वत लेना-देना नहीं (vii) अनैतिक व्यापार करना नहीं आदि । निर्व्यसनी और प्रामाणिक होने के लिए आपकी रचना की निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं
निर्व्यसनी हो, प्रामाणिक हो, धोखा न किसी जन के संग हो। संसार में पूजा पाना हो, तो सामायिक साधन करलो ।। साधक सामायिक संघ बने, सब जन सुनीति के भक्त बने । नर लोक में स्वर्ग बसाना हो, तो सामायिक साधन करलो ।।
(४) सम्प्रदायवाद का उन्मूलन-जब आप लघु वय में आचार्य पद पर आसीन हुए तो उस समय स्थानकवासी समाज सम्प्रदायवाद की कट्टरता से छोटे-२ वर्गों में विभाजित था तथा परस्पर वाद-विवाद व राग-द्वेषवर्धक प्रकृत्तियों का बड़ा जोर था । आपने समाज को अनेकान्त और स्याद्वाद के सिद्धान्तों के मर्म को समझाकर सम्प्रदायवाद के नशे को दूर किया। संपूर्ण समाज में प्रेम और संघटन का प्रसार किया। संपूर्ण स्थानकवासी समाज एक हो इस हेतु आपने न केवल प्रेरणा दी वरन् जब संघ हित में आवश्यक समझा तो प्राचार्य पद का भी स्वेच्छा से त्याग कर, सभी सम्प्रदायों को बृहत् श्रमरण संघ में विलीन हो एक होने का अद्भुत पाठ पढ़ाया। बाद में जब श्रमण संघ में शिथिलाचार बढ़ा और वह नियंत्रित न हो सका, तो चारित्रिक विकृतियों से संघ सुरक्षित रहे, इस हेतु पुनः रत्न संघ की स्थापना की जो बिना सम्प्रदायवाद के शुद्धाचार के पोषण व संरक्षण के लिए कार्यरत है। इस रत्न संघ के अनुयायी सभी संप्रदायों के साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करते हैं और उन सभी
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