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________________ • १६६ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व हजारों बाल, युवा व वृद्ध जिन्होंने कभी पूर्व में सामायिक न की थी, वे भी नियमित सामायिक करने लगे और इसके व्यवस्थित प्रचार-प्रसार हेतु अ० भा० सामायिक संघ, जयपुर की स्थापना भी की गई। इस अभियान से एक विशेष लाभ यह हुआ कि अनेक स्थानों पर जहाँ धर्म-स्थानक संतों के रहने के समय या पर्युषण के समय को छोड, बंद और वीरान पड़े रहते थे, उनकी सफाई तक नहीं होती थी, वहां पर अब नियमित सामूहिक सामायिकें होने लगी और जहाँ साधना स्थल नहीं थे, वहाँ भी सामायिक साधनार्थ उपयुक्त धर्मस्थान निर्मित हो गए। धर्म साधना का प्रचार अधिकाधिक हो, इस हेतु अ०भा० सामायिक संघ के अतिरिक्त निम्न संस्थाएँ भी आपकी सद्प्रेरणा से संस्थापित (i) अ० भा० श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, जोधपुर । (ii) अ० भा० श्री महावीर जैन श्राविका संघ, जोधपुर । (iii) श्री जैन रत्न युवक संघ, जोधपुर। (iv) श्री जैन रत्न युवक संघ, सवाईमाधोपुर आदि । (२) जीवदया सम्बन्धी पारमार्थिक प्रवृत्तियों-प्राचार्य प्रवर दया एवं करुणा के अनन्य स्रोत थे, जिससे आपकी साधना की एक प्रमुख देन जीवदया की पारमार्थिक प्रवृत्तियों का प्रारम्भ और कल्याण कोषों की स्थापना है। नगर-२ ग्राम-२ में जीवदया सम्बन्धी अनेक मंडल, संघ व संस्थाएँ स्थापित हुईं हैं जिनसे हजारों दीन-दुःखी, अनाथ, अपंग, निर्धन, संकटग्रस्त भाई-बहिन, छात्रछात्राएँ विभिन्न प्रकार की सहायता प्राप्त कर लाभान्वित होते हैं। निरीह पशुपक्षियों को भी दाना-पानी चारे आदि से राहत पहुँचाई जाती है तथा वध के लिए जाते अनेक पशुओं को भी अभय दान दिलाया जाता है। ऐसी पारमार्थिक संस्थाओं में मुख्य इस प्रकार हैं : (i) भूधर कल्याण कोष, जयपुर । (ii) श्री महावीर जैन रत्न कल्याण कोष, सवाईमाधोपुर । (iii) स्वधर्मी सहायता कोष, जोधपुर । (iv) स्वधर्मी सहायता कोष, जयपुर। (v) श्री जीवदया मण्डल ट्रस्ट, टोंक। इस ट्रस्ट के द्वारा न केवल असहाय मनुष्यों को सहायता व राहत पहुँचाई जाती है वरन् पशु-पक्षियों को राहत पहुँचाना, पशु-बलि रुकवाना व शाकाहार का प्रचार करना आदि कार्य भी किए जाते हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003843
Book TitleJinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1992
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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