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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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देकर तत्सम्बन्धी विशाल कोष समाज को समर्पित किया है। आपने लगभग पचास ग्रंथों की रचना की जिनमें मुख्य प्रकाशन इस प्रकार हैं
(i) जैन धर्म का मौलिक इतिहास भा० १ से ४ तक । (ii) जैनाचार्य (पट्टावलि) चरित्रावलि । (iii) गजेन्द्र व्याख्यान माला भा० १ से ७ तक । (iv) आध्यात्मिक साधना भा० १ से ४ तक । आप द्वारा निम्न प्रागमों की टीका एवं संपादन भी किया गया(v) बृहत्कल्प सूत्र । (vi) प्रश्न व्याकरण सूत्र । (vii) अंतगड़दसा। (viii) दशवकालिक सूत्र । (ix) उत्तराध्ययन सूत्र । (x) नन्दी सूत्र आदि।
(५) प्राध्यात्मिक ज्ञान प्रसारक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशनचतुर्विध संघ एवं समाज में सम्यग्ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की त्रिवेणी निरन्तर गतिमान हो, प्रवाहित होती रहे, जन-जन में जाग्रति आती रहे, इस हेतु निम्न पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ
(i) जिनवाणी (ii) वीर-उपासिका (ii) स्वाध्याय शिक्षा (iv) रत्न श्रावक संघ का मासिक बुलेटिन । [ब] चारित्र एवं त्यागमूलक उपलब्धियां
यापकी चारित्रिक योग साधना अजब-गजब होने से उससे समाज को अनेक प्रकार की चारित्रिक, नैतिक एवं पारमार्थिक उपलब्धियां मिली हैं। इनमें मुख्य इस प्रकार हैं :
(१) प्र० भा० सामायिक संघ की स्थापना-भारत के सुदूर प्रान्तों में भी आपने अनेक परिषह सहन करते विचरण कर, नगर-२, ग्राम-२ में नियमित सामायिक व्रत धारण कराने का एक विशिष्ट अभियान चलाया। परिणामतः
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