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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
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उत्कृष्ट श्रेणी की थी, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप द्वारा मरणांतिक वेदना भी समभाव से, बिना कुछ बोले या घबराहट के शान्त भाव से सहन करना रहा है। सूत्रकृतांग' (१/६/३१) में कहा है-'सुमणे अहिया सिज्जा, रण य कोलाहलं करे ।' अर्थात् कैसा भी कष्ट हो, बिना कोलाहल करे, प्रसन्न मन से सहन करे, वह उत्तम श्रमरण है। आचार्य प्रवर ने सुदीर्घ उत्तम साधना के द्वारा समाज व राष्ट्र को जो महान् उपलब्धियाँ दीं, उनकी संक्षिप्त झलक यहाँ प्रस्तुत की जाती है।
प्राचार्य प्रवर की साधना की देन दो प्रकार की रही है—एक ज्ञानदर्शनमूलक तो दूसरी चारित्र एवं त्यागमूलक जिनका क्रमश: यहाँ उल्लेख किया जाता है।
[अ] ज्ञानदर्शनमूलक उपलब्धियाँ
(१) प्र० भा० स्तर के स्वाध्याय संघों की स्थापना-आत्म-साधना के मूल, विशुद्ध अध्यात्म ज्ञान के प्रचार हेतु आपने रामबाण व संजीवनी समान स्वाध्याय का मार्ग प्रशस्त किया । आपके द्वारा अ० भा० स्तर पर बृहद् स्वाध्याय संघ की स्थापया की प्रेरणा दी गई। परिणामस्वरूप अ० भा० श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर गठित हुआ जिसकी शाखाएँ सवाईमाधोपुर, जयपुर, अलवर के अलावा भारत के विभिन्न सुदूर प्रान्तों में स्वतंत्र रूप से जैसे मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाड आदि में भी स्थापित हुई हैं । लगभग १०-१२-शाखाएँ अभी संचालित हैं और इनके माध्यम से पर्युषण पर्व में लगभग ८०० स्वाध्यायी प्रतिवर्ष भारत के कोने-कोने में पहुँच कर धर्माराधना कराते हैं। इन स्वाध्याय संघों की उपयोगिता जानकर अन्य संप्रदायों द्वारा सुधर्मा स्वाध्याय संघ, जोधपुर, स्वाध्याय संघ, पूना, स्वाध्याय संघ, कांकरोली, समता स्वाध्याय संघ, उदयपुर आदि भी स्थापित हुए हैं।
(२) अ०भा० जैन विद्वत् परिषद्, जयपुर-आपकी सप्रेरणा से भारत के मूर्धन्य जैन विद्वानों एवं लक्ष्मीपतियों को एक मंच पर संगठित कर अ० भा० जैन विद्वत् परिषद् का गठन किया गया। इसके द्वारा विभिन्न आध्यात्मिक विययों पर विशिष्ट विद्वानों से श्रेष्ठ निबन्ध तैयार कराकर उन्हें ट्रैक्ट रूप में प्रकाशित कर प्रसारित किया जाता है। ये ट्रेक्ट बड़े उपयोगी एवं लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं। इसके अतिरिक्त इस परिषद् द्वारा प्रतिवर्ष विभिन्न स्थानों पर विभिन्न जैनाचार्यों के सान्निध्य में महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं जिनमें भारत के कोने-कोने से आए विद्वान् शोध-निबन्ध प्रस्तुत करते हैं जिनका जन साधारण के लाभ हेतु संकलन भी किया जाता है। इस
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