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प्राचार्य श्री की साधना विषयक देन
0 श्री जशकरण डागा
"जिसने ज्ञान ज्योति से जग के, अंधकार को दूर भगाया । सामायिक स्वाध्याय का जिसने, घर-घर जाकर पाठ पढ़ाया ।। जिसने धर्म साधना-बल से, लाखों को सन्मार्ग लगाया । जय-२ हो उस गणि हस्ति की, जिसकी शक्ति का पार न पाया ।"
साधना : अर्थ एवं उद्देश्य-जो प्रक्रिया साध्य को लक्ष्य कर उसकी उपलब्धि हेतु की जाती है, उसे साधना कहते हैं। वैसे तो साधना के अनेक प्रकार हैं, किन्तु जो साधना साधक को बहिरात्मा से अंतरात्मा, अंतरात्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बना दे अथवा पुरुषत्व को जाग्रत कर पुरुषोत्तम बनादे, वही सर्वोत्तम साधना है। कहा भी है
"कला बहत्तर पुरुष की, त्यां में दो प्रधान ।
एक जीव की जीविका, एक प्रात्म-कल्याण ॥" जीव की जीविका से भी प्रात्म-कल्याण की कला (साधना) श्रेष्ठतम है। कारण जो प्रात्मा को परमात्मा बनादे उससे अनुत्तर अन्य कला नहीं हो सकती है । एक उर्दू कवि ने कहा है
"अफसाना वह इन्सान को, ईमान सिखादे। ईमान वह इन्सान को, रहमान बनादे ।।"
ऐसी उत्तम साधना ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय से मण्डित होती है । आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी म. सा० की सम्पूर्ण जीवन-चर्या ऐसी उत्तम साधना से पूरित एवं अध्यात्म ऊर्जा से ओतप्रोत थी। साठ वर्ष से भी अधिक समय तक प्राचार्य पद को सुशोभित करते हुए निरन्तर उत्तम साधना के द्वारा आप असीम आत्मबल को उपलब्ध हुए थे। यही कारण था कि जो भी आपके सम्पर्क में आता, आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। आपकी साधना
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