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________________ कर्म के भेद-प्रभेद ] [ ३७ सदा-सर्वदा अनावृत्त रहता है । जैसे घनघोर-घटाओं को विदीर्ण करता हुआ सूर्य प्रकाशमान हो उठता है, उसकी स्वर्णिम-प्रभा भूमण्डल पर आती है पर सभी भवनों पर उसकी दिव्य किरणें एक समान नहीं गिरतीं। भवनों की बनावटों के अनुसार मन्द, मन्दतर और मन्दतम गिरती हैं, वैसे ही ज्ञान का दिव्य आलोक मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण आदि कर्म-प्रकृतियों के उदय के तारतम्य के अनुसार मन्द, मन्दतर और मन्दतम हो जाता है । ज्ञान आत्मा का एक मौलिक गुण है । वह पूर्णरूपेण कभी भी तिरोहित नहीं हो सकता। यदि वह दिव्य गुण तिरोहित हो जाय तो जीव अजीव हो जाएगा। इस कर्म की न्यूनतम स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटा-कोटि सागरोपम की है। २. दर्शनावरणीय कर्म : वस्तुओं की विशेषता को ग्रहण किये बिना उनके सामान्य धर्म का बोध करना दर्शनोपयोग है। इस कर्म के कारण दर्शनोपयोग आच्छादित होता है । जब दर्शन गुण परिसीमित होता है, तब ज्ञानोपलब्धि का द्वार भी अवरुद्ध हो जाता है। प्रस्तुत कर्म की परितुलना अनुशास्ता के उस द्वारपाल के साथ की गई है जो अनुशासक से किसी व्यक्ति को मिलने में बाधा पहुँचाता है, उसी १. (क) सव्वजीवाणं पि य णं अक्खरस्स अणंतभागो णिच्चु घाडियो हवइ । जइ पुण सो वि आवरिज्जा तेणं जीवा अजीवत्तं पावेज्जा । सुट्ठवि मेहसमुदये होइ पभा चन्दसूराणं । नन्दीसूत्र-४३ ॥ (ख) देशः-ज्ञानास्याऽऽभिनिबोधिकादिभावृणोतीति देशज्ञानावरणीयम्, सर्व ज्ञानं केवलाख्यमावृणोतीति सर्वज्ञानावरणीयं केवलावरणं हि आदित्य कल्पस्य केवलज्ञानरूपस्य। जीवस्याच्छादकतया सान्द्रमेघवृन्दकल्पमितितत्सर्वज्ञानावरणं । मत्याद्यावरणं तु घनातिच्छादितादित्येषत्प्रभाकल्पस्य केवलज्ञानदेशस्य कटकुटचादिरूपावरणतुल्यमिति देशावरणमिति । स्थानांग सूत्र-२/४/१०५ टीका २. (क) तत्त्वार्थ सूत्र-८/१५ (ख) पंचम कर्म ग्रन्थ गाथा-२६ उत्तराध्ययन सूत्र-३३/१६-२० ॥ ३. जं सामन्नग्गहणं भावाणं नेव कटु आगारं । अविसेसिऊण अत्थे, डंसणमिह वुच्चए समये ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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