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________________ ३३८ ] [ कर्म सिद्धान्त एक सुन्दर नर-युगल को लाकर वहाँ उपस्थित किया-साधुवेश में एक युवा साधु और एक युवा साध्वी । सिर पर मृत्यु होते हुए भी चेहरे पर अपूर्व सौम्यता, करुणा और तेज । उनके सामने बलि देने वाले राजा की तलवार अचानक नीचे झुक गयी। कौतूहल जग गया। यह नर-युगल कौन हैं ? राजा ने पूछा-'बलि देने के पूर्व मैं आपका परिचय जानना चाहता हूँ।' नर-युगल के मुनि कुमार ने जो परिचय दिया वह इस प्रकार है। __ अवन्ति नामक जनपद में उज्जयिनी नगरी है। वहाँ यशोधर राजा अपनी रानी अमृतमति के साथ निवास करता था। एक रात्रि में यशोधर ने रानी अमृतमति को एक महावत के साथ विलास करते देख लिया । पतन की इस पराकाष्ठा से राजा का मन संसार से विरक्त हो गया । प्रातःकाल जब उसके उदास मन का राजमाता चन्द्रमति ने कारण पूछा तो यशोधर ने एक दुःस्वप्न की कथा गढ़ दी। किन्तु राजमाता से राजा के दुःख की गहरायी छिपी न रही । अतः उसने अपने पुत्र के मन की शान्ति के लिए कुलदेवी चंडमारी के मंदिर में पशु-बलि देने का आग्रह किया। किन्तु यशोधर पशु-बलि के पक्ष में नहीं हुआ। तब माता ने उसे सुझाया कि आटे का मुर्गा बनाकर उसकी बलि दी जा सकती है। यशोधर ने विवश होकर यह प्रस्ताव मान लिया। किन्तु इस शर्त के साथ कि इस बलिकर्म के बाद वह अपने पुत्र यशोमति को राज्य देकर विरक्त हो जायेगा। रानी अमृतमति ने जब यह सब जाना तो उसे ज्ञात हुआ कि रात्रि में महावत के साथ किये गये विलास को राजा जान गया है। राजमाता भी इसको जानती होगी । अतः अब दोनों को रास्ते से हटाना होगा । अतः उसने अपनी चतुराई से राजा और राजमाता को उसी दिन अपने यहाँ भोजन पर आमन्त्रित किया और उसी दिन बलि चढ़ाये हुए उस आटे के मुर्ग में विष मिलाकर प्रसाद के रूप में मां और पुत्र को उसने खिला दिया। इससे यशोधर और उसकी मां चन्द्रमति दोनों की मृत्य हो गयी। संकल्पपूर्वक की गयी आटे के मुर्गे की हिंसा के कारण तीव्र कर्मबन्ध हुआ। उसके कारण वे दोनों मां-बेटे छः जन्मों तक पशु-योनि में भटकते रहे। कुत्ता, हिरण, मछली, बकरा, मुर्गा आदि के जन्मों को पार करते हुए उन्हें संयोग से सुदत्त नामक प्राचार्य के उपदेश से अपने पूर्व-जन्म, का स्मरण हो आया। उससे पश्चात्ताप की अग्नि ने उनके कुछ दुष्कर्मों को जला दिया । अतः अगले जन्म में वे दोनों यशोमति राजा और कुसुमावलि रानी के यहाँ भाईबहिन के रूप में उत्पन्न हुए । संयोगवश उन्हीं आचार्य सुदत्त से जब यशोमति ने अपने पूर्वजों का वृत्तान्त पूछा तो ज्ञात हुआ कि उसके पिता यशोधर एवं पितामही चन्द्रमति उसके यहाँ पुत्र एवं पुत्री के रूप में पैदा हुए हैं। यह कथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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