SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ ] [ कर्म सिद्धान्त कर्म और अनुग्रह मसीही धर्म में कर्म के साथ ही अनुग्रह का बहुत अधिक महत्त्व है क्योंकि उद्धार अनुग्रह के ही कारण है । यदि ईश्वर अनुग्रह न करे तो कर्म व्यर्थ है । बाइबल में लिखा है-"जो मुझ से, हे प्रभ, हे प्रभु कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा।"१ मसीही धर्म इसीलिए अनुग्रह का प्रचार करता है क्योंकि लिखा है-"क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।"२ जीवन में पवित्रता अनुग्रह के ही द्वारा आती है । पौलुस लिखता है कि "मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्था के द्वारा धार्मिकता होती तो मसीह का मरना व्यर्थ होता।"3 पौलुस का पूर्ण विश्वास था कि प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु ही अनुग्रह को पृथ्वी पर मानवता के लिए लाई है। अनुग्रह को कभी भी क्रय नहीं किया जा सकता और न ही धार्मिक कर्मों के द्वारा अजित किया जा सकता है किन्तु अनुग्रह उन्हीं पर होता है जो परमेश्वर की आज्ञा मानता है। पौलुस समझाते हुए लिखता है “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।" इसी अनग्रह के बारे में वह आगे कहता है-"तो उसने हमारा उद्धार किया; और यह धर्म के कार्यों के कारण नहीं, जो हमने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार नए जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।"५ उपसंहार : मसीही धर्म में कर्म की मान्यता होते हुए भी अनुग्रह का महत्त्व है। वास्तव में परमेश्वर का प्रेम मनुष्य जाति के लिए उसका अनुग्रह है जिसके द्वारा मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। एक गुजराती लेखक धनजी भाई फकीर भाई अनुग्रह के बारे में लिखते हैं कि "अनुग्रह कोई जादू का प्रभाव नहीं है अथवा कोई तत्त्व अथवा कोई दान नहीं है किन्तु अनुग्रह एक व्यक्ति है जो प्रभु यीशु मसीह स्वयं हैं।" इस कारण मसीही धर्म में कर्म, विश्वास और अनुग्रह का एक संगम है। ४ सय १. भत्ती ७ : २१ २. इफिसियो २:८-६ ३. गलतियो २ : २१ ४. रोमियो ६ : २३ ५. तीतुस ३:५ ६. Kristopanished"-Dhanji Bhai kakif Bhai, P. 21 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy