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________________ २८ इस्लाम धर्म संसार के परित्याग की, विरक्ति की ओर ले जाने वाला धर्म नहीं; तर्के दुनिया या रहबानियत का संदेश देने वाला नहीं। वह कर्म का संदेश देता है, संयम से जीवन व्यतीत करने का मार्ग प्रशस्त करता है । इस लोक के साथ परलोक पर भी उसकी दृष्टि रहती है और परलोक को इहलोक पर प्राथमिकता देता है | मनुष्य कर्म करने में पूर्णतः स्वतन्त्र है, उसे अपने कर्मों का फल भी निश्चित रूप में भोगना है और 'रोज़ - मशहर' में - ' अन्तिम निर्णय' के दिन उसे अल्लाह के दरबार में हाजिर होकर अपने कर्मों का हिसाब देना होता है - " जो व्यक्ति सत्कर्म करेगा चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, बशर्ते कि वह मोमिन हो, उसे हम संसार में पवित्र जीवन व्यतीत करायेंगे और परलोक में ऐसे व्यक्तियों को उनके प्रतिकार, पुण्य, उत्तम कर्मों के अनुसार प्रदान किये जायेंगे ।" " इस्लाम धर्म में कर्म का स्वरूप डॉ० निजाम उद्दीन जैसा कर्म वैसा फल मिलेगा । स्वर्ग और नरक का - जन्नत व दोज़ख का निर्णय लोगों के हक़ में कर्मों के आधार पर ही होगा - डॉ० इक़बाल ने ठीक फरमाया है: अमल से जिंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी, यह खाकी अपनी फ़ितरत में, न नूरी है न नारी है । कुरआन में बार-बार यह घोषणा की गई है - " व बश्शिरिल्लज़ीना आमनू व आमिलुस्सुप्रालिहाति अन्नालाहुम जन्नातिन तजरी मिन-तहतिहल अन्हार । २ ए पैग़म्बर ! खुशखबरी सुना दीजिए उन लोगों को जो ईमान लाए और काम किये अच्छे, इस बात की कि निःसंदेह उनके लिए जन्नतें (स्वर्ग) हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं । १ - कुरान, नहल - १२५ २ – अलबकर, २५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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