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________________ २०४ ] [ कर्म सिद्धान्त दिया है जब कि धरातल पर वह जन्म और मृत्यु का सिद्धान्त है, वह एक हिन्दू नैतिक सिद्धान्त है । ' हॉंग महोदय ने कर्म के विषय में एक ही प्रश्न उठाया है कि क्या कर्म नैतिक रूप से संतुष्टि देता है ? ए. सी. बोक्वेट का मत है कि सांसारिक न्याय के रूप में कर्म सिद्धान्त अपने आप में निन्दनीय है । डॉ. ए. एस. थियोडोर का मत है कि कर्म सिद्धान्त के न्यायतावाद में दया, पश्चात्ताप, क्षमा, पापों का शोधन करने का स्थान नहीं है । 'गीता रहस्य' में बाल गंगाधर तिलक एवं अन्य भारतीय विद्वानों द्वारा कर्म के प्रत्यय के प्रतिपादन के द्वारा जो तथ्य सामने आते हैं उनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि कर्म का यह विचार ईश्वर और मनुष्य की स्वतन्त्रता दोनों को छीन लेता है । इसी आधार पर पाश्चात्य विद्वान् सिडनी केव ने अपनी पुस्तक 'रिडेम्पशन – हिन्दूइज्म एण्ड क्रिश्यिनिटि' में तीन बातें प्रकट की हैं कि इस सिद्धान्त के कारण संसार बुरे से बहुत बुरा होता जा रहा है । अछूत, अछूत ही रहेंगे और कोढ़ी, कोढ़ी ही । शुभ कर्म जो अर्जित किये गये, उनका परिणाम अगले जीवन में होगा जिसका सम्बन्ध वर्तमान के जीवन और उसकी चेतना से सम्बन्धित नहीं है । दूसरा तथ्य यह कि यदि कर्म दृष्टिकोण ठीक है तो कोढ़ी, लंगड़े, अन्धे और दुःखो व्यक्ति सभी को अभियुक्त (Criminals) गिना जाना चाहिए क्योंकि वे अपने पूर्व जन्म के किये गये अशुभ कर्मों का दण्ड ( Punishment) भोग रहे हैं । तीसरा तथ्य यह कि कर्म सिद्धान्त भूतकाल के पाप और वर्तमान के दुःख सम्बन्ध बताने में असफल रहा है क्योंकि भूतकाल की हमें स्मृति नहीं है और कर्म सिद्धान्त हमें कोई आशा नहीं दिलाता कि नैतिक संघर्ष के • द्वारा पाप और बुराई से छुटकारा हो जावेगा । ४ स्टीफन नेल गांधी जी की हत्या को लेकर प्रश्न उठाते हैं और लिखते हैं - "The heaviest blow at the traditional doctrine of Karma was dealt by Mr. Gandhi, not by his teaching but by the manner of his death at the hand of an assessin. is the fruit of If all misfortune १. The crown of Hinduism - Farquhar, P. 212 R. Christian Faith and Non-Christian Religion-A. C. Bonquet, P. 196 ३. Religon and Society vol. No. XIV, No. 4, 1967 ४. Redemption : Hinduism and Christianity - Sydney Cave. P. 185, 186, 187 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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