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________________ मसीही धर्म में कर्म की मान्यता ] [ २०५ ancient deeds, then such a violent death should be evidence of gravely sinful part.''१ इसी प्रकार एक भारतीय मसीह लेखक ने अपने विचारों को निम्न रूप से प्रगट किया है "जब रामचन्द्रजी को १४ वर्ष का बनवास दिया गया, तो उन्होंने उसे क्यों ग्रहण कर लिया ? क्या वे अपने प्रारब्ध के कारण उसे ग्रहण करने को बाध्य थे, या अपनी माता कौशल्या के कारण ? २ मसीही धर्म में कर्म : मसीही धर्म में कर्म, विश्वास और पश्चात्ताप पर अधिक बल दिया गया है । केवल एक हो प्रत्यय मनुष्य को उद्धार दिलाने में सहायक नहीं हो सकता । एक स्थान पर कर्म की महत्ता पर बल देते हुए याकूब जो प्रभु यीशु मसीह का भाई था, अपनी पत्री में लिखता है कि "सो तुमने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं कर्मों से भी धर्मी ठहरता है । " 3 अर्थात् कर्मों के साथ विश्वास भी आवश्यक है और विश्वास कर्मों के द्वारा सिद्ध होता है जैसा कि एक अन्य स्थान पर याकूब का ही कथन है कि “सो तुमने देख लिया कि विश्वास ने उसके कर्मों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ । याकूब विश्वास और कर्म दोनों को साथ-साथ लेकर चलता है परन्तु उसका झुकाव कर्म की ओर है । उपरोक्त कथन के तारतम्य में ही वह कहता है - " जैसे देह आत्मा बिना मरी है, वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है ।"" एक अन्य स्थान पर वह लिखता है कि "हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है ? " ६ इन कथनों से स्पष्ट है कि मसीह धर्म में कर्म और विश्वास व्यक्ति के सहायक हैं । जहाँ याकूब ने कर्म के ऊपर बल दिया, पौलुस विश्वास पर बल देता है । उसका कथन है कि "मनुष्य विश्वास से धर्मी ठहरता है कर्मों से नहीं ।”७ यह तथ्य स्पष्ट कर देता है कि मनुष्य के कर्म उसका उद्धार नहीं कर सकते । वह अपने कर्मों पर घमण्ड नहीं कर सकता । पौलुस की विचारधारा में कर्म की अपेक्षा विश्वास का महत्त्व है । इसी कारण रोमियो की पत्री में वह कहता है कि "यदि इब्राहीम कर्मों से धर्मी ठहराया जाता तो उसे घमण्ड करने १. Christian Faith and other faiths - Stephen Neill P. 86 २. वेदान्त और बाइबल - आचार्य जेम्स दयाल ख्रीष्टानन्द पृ. ५३ ४. याकूब की पत्री २ : २२ ३. याकूब की पत्री २ : २४ ५. याकूब की पत्री २ : २६ ६. याकूब की पत्री २ : २० ७. रोमियो ५ : १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003842
Book TitleJinvani Special issue on Karmsiddhant Visheshank 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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