________________
प्राचीन स्थितिका अन्वेषण में उन्हें जीतकर उनके बहुतसे आदमियोंको दास बना लिया था। ये दो जातियां-एक आर्य और एक तथोक्त दास दस्यु जिन्हें द्रविड़ माना जाता है--भारतकी नृवंश विद्याके दो मूल तत्त्व हैं। उन दोनोंने परस्परमें एक दूसरे पर अपना जो प्रभाव डाला, उस पारस्परिक प्रभावके फलस्वरूप भारतकी सभ्यता और धर्मका विकास हुआ। ___ भारतकी धार्मिक क्रान्तिके अध्ययनमें जो विद्वान लोग अपना सारा ध्यान आर्य जातिकी ओर ही लगा देते हैं और भारतके समस्त इतिहासमें द्रविड़ोंने जो बड़ा भाग लिया है उसकी उपेक्षा कर देते हैं वे महत्त्वके तथ्यों तक पहुंचनेसे रह जाते हैं । (रि० लि. इ. पृ. ४-५)।
वैदिक आर्यो का विश्वास था कि यज्ञ देवताओंको प्रभावित करते और उनसे इष्ट वस्तुकी प्राप्ति कराने में समर्थ हैं। अतः प्रत्येक प्रमुख आर्य पुरोहितोंसे सहायता प्राप्त करनेके लिये उत्सुक रहता था और पुरोहित उनके लिये देवताओंसे जो समृद्धि और विजय प्राप्त करता था उसके लिये वे उसे प्रचुर दक्षिणा देते थे। इसलिये पुरोहितोंका बड़ा प्रभाव और आदर-सन्मान था और उनके अनेक वंश थे । ऋग्वेद की ऋचाएं सात समूहोंमें विभाजित हैं। ये सात समूह सात पुरोहित वंशों की, जिन्हें मंत्र द्रष्टा होनेसे ऋषि कहा जाता है, देन है। __परन्तु ऋग्वेदके धर्ममें न संन्यास है, न आत्मसंयम है, न वैराग्य है न दर्शन है और न मन्दिर है; क्योंकि यज्ञ तो यज्ञकर्ताके घर के पास ही किसी मैदानमें वेदी बनाकर किये जाते थे।
सारांश यह है कि वैदिक सभ्यता क्रियाकाण्डी सभ्यता थी। वैदिक आयोंके धार्मिक जीवनका सबसे प्रमुख अंग यज्ञोंमें सोम
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org