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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण डा० होपकिन्सका कहना है कि ब्राह्मण ग्रन्थोंके साथ ही न केवल ऋग्वैदिक कालीन टोन ही बदल गई, किन्तु समस्त धार्मिक वातावरण एक प्रफुल्ल वास्तविक धर्मके बदलेमें, जो ऋक्संहिताका आत्मा है, मंत्र तंत्र, आध्यात्मिकता और धार्मिकताके भारसे आक्रान्त हो उठा। ब्राह्मण ग्रन्थोंमें न वह नवीनता है, और न वह कविता है । है केवल स्वमताग्रह, मूढ़ता
और विद्वेषकी भावना। यह सत्य है कि इन सबके चिन्ह ऋकवेंदके कुछ भागोंमें भी पाये जा सकते हैं, किन्तु यह भी सत्य है कि वे चिन्ह ब्राह्मण ग्रन्थोंमे जिस प्रकार ब्राह्मण कालका प्रतिनिधित्व करते हैं, अपने समयका वैसा प्रतिनिधित्व ऋग्वेदमें नहीं करते। (रि० इं०, पृ० १७६-१७७)।
ऋग्वेदके साथ इतर संहिताओं तथा ब्राह्मण ग्रन्थोंका तुलनात्मक अध्ययन करने से यह तो स्पष्ट प्रतीत होता है कि ऋग्वेदकालीन धर्म ने करवट बदल ली है। अतः वैदिक धर्मका एक अध्याय ऋग्वेदके साथ समाप्त हो जाता है। और इसलिये उसके प्रकाश में उत्तर कालीन संहिता और ब्राह्मण ग्रन्थोंके कठोर क्रियाकाण्डी धर्मको लक्ष्यमें रखकर ऋग्वेदके साथ ही बैदिक कालका अन्त मानना अनुचित नहीं है। वैदिक धर्मका दूसरा अध्याय ब्राह्मण ग्रन्थोंके साथ समाप्त हो जाता है और आरण्यक तथा उपनिषदों से तीसरा अध्याय प्रारम्भ होता है।
स्वरमेशचन्द्रदत्त ने लिखा है- "इसी समय जब आर्य लोग गंगाकी घाटीमें फैले, ऋग्वेद और तीनों अन्य वेद भी संग्रहीत और सम्पादित हुए। तभी एक दूसरे प्रकारके ग्रन्थोंकी रचना हुई, जो ब्राह्मण नामसे पुकारे जाते हैं। इन ग्रन्थोंमें यज्ञोंकी विधि लिखी है। यह निस्सार और विस्तीर्ण रचना
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