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________________ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका बैठाया। शतपथ ब्राह्मणमें लिखा है-ब्राह्मण ऋषियोंकी सन्तान है अतः उसमें सब देवताओंका आवास है। इस तरह ब्राह्मणोंने यज्ञके द्वारा अपनेको देवताओंसे भी बड़ा बना दिया। वैदिक काल विभाग ऊपर जिस धार्मिक स्थितिका चित्रण किया गया है वह ईसा पूर्व आठ सौके लगभग की है। अन्वेषक विद्वानों ने ब्राह्मण सभ्यता का उचित काल ईसा पूर्व ८०० से ई० पूर्व ६०० तक ठहराया है ( कै० हि• भा० १, पृ. १४६ )। डा. जेकोबीका कहना था कि वैदिक पश्चात् काल ईसा पूर्व आठवीं शतीसे आरम्भ होता है क्योंकि सांख्य-योग और जैनदर्शनके समकालीन प्रादुर्भाव के साथ ही वैदिक कालका अन्त हो जाता है। इनमेंसे जैन धर्मको ईसा पूर्व ७४० तक पीछे ले जाया जा सकता है, क्योंकि जैन धर्मके सम्भवतया संस्थापक पार्श्वनाथ थे, जिनका निर्वाण महावीर से २५० वर्ष पूर्व हुआ।' (रि० फि० वे० पृ० २०) किन्तु प्रो० बरुआ ऋग्वेदकी अन्तिम ऋचाकी पूर्ति होनेके साथ ही वैदिक पश्चात् कालका आरम्भ मानते हैं। उनका कहना है कि वैदिक कालसे वैदिक पश्चात् कालका विश्लेषण इस आधार पर किया जा सकता है कि ब्रह्मर्षि देश ऋग्वेदके पश्चात् अधिक दिनों तक बौद्धिक केन्द्र नहीं रहा, किन्तु उसका स्थान मध्य देश ने ले लिया। यह' मध्यदेश हिमालय और विन्ध्यके बीच में अवस्थित था और पूरबमें प्रयागसे लेकर पश्चिममें विनशन तक फैला हुआ था। कुरु, पञ्चाल, मत्स्य, शूरसेन ये चार उस समयके प्रसिद्ध जनतंत्र थे और काशी, विदेह और कोशल शक्तिशाली राज्य थे (प्री० बु० इं० फि०, पृ. ३६)। १- मनु० २-२१ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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