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श्रुतपरिचय
नामक अध्ययन में कपिल मुनिने केवल ज्ञानी होकर चोरोंको समझाने के लिए जो उपदेश दिया उसका संकलन है ।
नौवें नाम प्रव्रज्या नामक अध्ययन में नमि नामक प्रत्येक • बुद्ध राजाकी दीक्षाका वर्णन है । मिथिलाका राजा नमि कामभोगोंसे विरक्त होकर जिन दीक्षा लेता है और इन्द्र ब्राह्मणका रूप बनाकर उससे प्रश्न करता है । अन्तमें राजाके वैराग्य पूर्ण उत्तरोंसे सन्तुष्ट होकर इन्द्र नमस्कार करके चला जाता है । मिथिलाका राजा नमि ऐतिहासिक व्यक्ति है । इसके विषय में पहले लिख आये हैं । यह भगवान पार्श्वनाथ के काल में हुआ था। दसवें द्रुम पत्रक नामक अध्ययन में महावीर स्वामी गौतम गणधर से कहते हैं कि 'जैसे वृक्षका पत्ता पीला होकर झड़ जाता है वैसा ही मानव जीवन है । अतः गौतम एक क्षण के लिये भा प्रमाद मत कर' । छत्तीस पद्योंमें से प्रत्येकका अन्तिम चरण 'समयं गोयम ! मा पमायए' है । सभी पद्य सुन्दर उपदेश - प्रद हैं 1
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ग्यारहवें बहुश्रुत नामक अध्ययनके प्रारम्भिक पद्य में कहा गया है कि 'संयोग से मुक्त अनगार भिक्षुके आचारका कथन करूँगा उसे सुनो । बारहवें हरिकेशीय नामक अध्ययनमें हरिकेशी मुनिकी कथा है। हरिकेशी मुनि जन्ममे चाण्डाल था । एक दिन भिक्षा के लिए वह एक यज्ञ मण्डप में चला गया । वहाँ ब्राह्मणों से उसका वार्तालाप हुआ । ब्राह्मणोंने उसे वहाँसे चला जानेके लिए कहा । वह नहीं गया तो कुछ तरुण विद्यार्थियोंने उसे मारा | तब यक्षोंने उन कुमारोंको पाटा । पीछे हरिकेशी से क्षमा याचना करने पर छोड़ा। चित्रसम्भूतीय नामक तेरहवें अध्ययन चित्र और सम्भूति नामक मुनियोंका वृत्तान्त है । चौदहवें
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