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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका १२ पुण्डरीक अंगबाह्य-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क, कल्पवासी और वैमानिक सम्बन्धी इन्द्र सामानिक देव आदिमें उत्पत्तिके कारणभूत दान पूजा शील तप उपवास, सम्यक्त्व
और अकाम निर्जराका तथा उनके उपपाद स्थान और भवनोंके स्वरूपका वर्णन करता है। __ १३ महापुण्डरीक अंगबाह्य- उन्ही इन्द्रों श्रादिमें उत्पत्तिके कारण भूत तपो विशेष आदिका वर्णन करता है।
१४ निषिद्धिका अंगबाह्य-अनेक प्रकारके प्रायश्चितका वर्णन करता है।
अंगभिन्न श्वेताम्बरीय आगम वर्तमानमें श्वेताम्बर सम्प्रदायमें उक्त ग्यारह अगोंके सिवाय ३४ आगम और भी माने जाते हैं। वे हैं-१२ उपांग, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, १० पइन्ना (प्रकीर्णक), एक नन्दि और एक अनुयोग द्वार। इस तरह श्वेताम्बर सम्प्रदाय ४५ आगमोंको वर्तमानमें मानता है। किन्तु स्थानक वासी सम्प्रदाय उसमें से केवल बत्तीस आगमोंको ही मानता है जो इस प्रकार हैं-११ अग और १२ उपांग ये २३, एक निशीथ २४, एक बृहत्कल्प २५, एक व्यवहार सूत्र २६, एक दशाश्रुत २७, एक अनुयोग द्वार २८, एक नन्दि सूत्र २६, एक दश वैकालिक ३०, एक उत्तराध्ययन ३१, और एक आवश्यक ३२। ___औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्प चूलिका और वृष्णिदशा ये बारह उपांग हैं जिन्हें श्वेताम्बर तथा स्थानकवासी सम्प्रदाय मानते हैं। प्रत्येक अग
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