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________________ श्रुतपरिचय का एक एक उपांग माना जाता है इस लिये अंगोंकी तरह उपांगोंकी संख्या भी बारह ही मानी गई है। __ निशीथ, बृहत्कल्प. व्यवहार, दशा श्रुत स्कन्ध, पंचकल्प और महानिशीथ ये छै छेदसूत्र हैं। इनमेंसे स्थानक वासी केवल शुरूके चारको मानते हैं। आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन पिण्डनियुक्ति या अोधनियुक्ति ये चार मूल सूत्र हैं। इनमेंसे अन्तिम नियुक्तिको स्थानकवासी सम्प्रदाय नही मानता। ___ चतुः शरण, श्रातुर प्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, संस्तारक, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रबेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान, वीरस्तव, ये दस पइन्ना हैं जिन्हें स्थानकवासी मान्य नहीं करते । और दिगम्बर सम्प्रदायमें तो बारह अंगोंके सिवाय शेष आगमोंका कोई स्थान ही नहीं है। नन्दि और अनुयोगद्वार श्वेताम्बरीय आगमिक साहित्यका परिचय प्राप्त करने के लिये नन्दिसूत्र और अनुयोग द्वार सूत्र कोशके तुल्य हैं। उनको देखने से प्रतीत होता है कि उनके रचयिताओंने मूल आगमिक साहित्य का ज्ञान कराने के लिये जो जो वस्तुएँ तथा उपाय आवश्यक समझे उनका संकलन अपनी इन कृतियों में करनेका प्रयत्न किया था। चूँ कि नन्दि में अनुयोग द्वारका नाम आया है इसलिये अनुयोग द्वार नन्दीसे प्राचीन है। किन्तु आगमके विषय में नन्दिको अधिकारी माना जाता है। दोनोंमें ज्ञानकी चर्चा है । अनुयोगद्वारमें श्रुतके भेद अग प्रविष्ट और अङ्ग बाह्य करके अङ्ग बाह्यके कालिक और उत्कालिक भेद किये हैं और उत्कालिक के आवश्यक और आवश्यक व्यतिरिक्त ये दो भेद किये हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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