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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
इस देशके प्राचीन निवासियोंसे जो आसे अधिक सुसंस्कृत और सभ्य थे, प्रायः युद्ध करना पड़ते थे, जिससे कृषि कार्यों में विघ्न होता था और सुदक्ष प्रतिद्वन्दी योद्धाओं से युद्ध करने में भी कठिनाई प्रतीत होती थी । अतः कार्यका विभाजन कर दिया गया ।
'आरम्भ में वैदिक आर्यों में जातिभेद नहीं था । ऐसा प्रतीत होता है कि पौरोहित्य और शासनका काम संयुक्त था । किन्तु वैदिक आर्यों और पंजाब - अफगानिस्तान के प्राचीन निवासियोंके साथ होनेवाले सतत युद्धोंने वैदिक आर्योंको विवश किया कि अपने-अपने व्यवसायके अनुसार वे अपनेको विभिन्न समुदायों में विभाजित करलें । धीरे-धीरे योद्धा लोगोंका स्थान उन्नत होता गया और वे क्षत्रिय कहलाये ।
४५.
ऋग्वेद में वर्ण' शब्द मनुष्योंकी कक्षाएँ बतलानेके लिये आया है, क्योंकि दासों और आयके वर्ण में अन्तर था । किन्तु, इस दृष्टि अन्य संहिताओं और ब्राह्मण ग्रन्थोंसे ऋग्वेदका मौलिक मतभेद है; क्योंकि उनमें चार वर्णोंका स्पष्टरूपसे निर्देश है । यद्यपि ऋग्वेद के अन्तिम पुरुष सूक्तमें भी राजन्य, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र चार वर्णोंका निर्देश है, किन्तु चूँकि विद्वान लोग इस सूक्तको अर्वाचीन मानते हैं, अतः ऋग्वेद कालमें चारों वर्णोंके स्थापित हो जानेकी बात संदिग्ध मानी जाती है । जिम्मर' ( Zimmer ) का कहना है कि ऋग्वेद की जातिविहीन परम्पराका जो यजुर्वेदकी जातिगत परम्पराके रूपमें परिवर्तन हुआ इसका सम्बन्ध वैदिक आर्योंके पूरवकी ओर बढ़नेसे है ।
१. प्री हि० इं०, पृ० २३ । २. वै० इं०, जि० २, पृ० २४८ ।
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