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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका प्रारम्भमें राजन्य अपने तथा जनताके लिये यज्ञ कर सकता था। किन्तु ऋग्वेद (३-३३-८, ७-१८-८३) में ऐसे भी उल्लेख हैं, जिनमें पुरोहिताई जबरदस्ती ली गई है, जैसे विश्वामित्र और वशिष्ठके सम्बन्धमें | जब ऋग्वेद पूर्ण हुआ तब पुरोहित जाति स्पष्टरूपसे पृथक स्थापित हो चुकी थी। तथापि दो क्षत्रिय वर्गोंने बलपूर्वक पुरोहितोमें स्थान प्राप्त कर लिया। अंगिरस, वशिष्ठ, अगस्त्य और भार्गवोंको मूलतः दैवीय बतलाया है। किन्तु विश्वामित्र और काण्वको क्षत्रिय वर्गका बतलाया है। ___ विश्वामित्र भारत क्षत्रियोंमें से थे और कण्व नृषदका पुत्र था, जिसे पुराणोंमें क्षत्रिय कहा है। आश्वलायन श्रौत्रसूत्रके अनुसार विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, काश्यप और अगस्त्य ये सब ब्राह्मणोंके पूर्व पुरुष हैं । इन आठोंमें से चारको ब्राह्मण गोत्रोंका मूल माना जाता है । महाभारतमें कहा है कि अंगिरस, काश्यप, वशिष्ठ और भृगुसे वैदिक आर्योंके प्राचीनतम पुरोहितोंकी सन्तान चली है । वैदिक साहित्य बतलाता है कि उन पूर्व पुरोहितोंने अन्य वर्गों के मनुष्यों के द्वारा पुरोहितोंका कार्य किये जानेपर रोष प्रकट करना आरम्भ किया। विश्वामित्र और वशिष्ठकी कलह स्पष्टरूपसे इस बातकी सूचक हैं कि प्राधान्य और शक्तिके लिये पुरोहितों और राजन्योंके बीच में झगड़े हुए थे। ___यहाँ पुरोहित और ब्राह्मणके सम्बन्धमें थोड़ा प्रकाश डाल देना उचित होगा। राजाके समस्त धार्मिक कृत्योंमें पुरोहित-अगुआ होता था । एतरेय ब्राह्मण (८-२५) में कहा है कि राजाको एक पुरोहित अबश्य रखना चाहिये, अन्यथा देवता उसकी भेंट
१. डीहि० इं०, पृ० २४ ।
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