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________________ श्रु तपरिचय , ६५३ ब्राह्मी लिपी आदि के १८ प्रकार के भेदोंका निर्देश है दृष्टिवादरके ४६ मातृकापद और ब्राह्मी लिपीके ४६ मात्रकाक्षर बतलाये हैं। ___इसमें शुरुके तीन अंगोंको एक इकाईके रूपमें रखकर तीनोंके अध्ययनोंकी संख्या ५७ बतलाई३ है-आचारमें २४ सूत्रकृतमें २३ और स्थानमें १० । ___ इस अंगकी एक सबसे उल्लेखनीय वस्तु है-इसमें नन्दीसूत्रका निर्देश पाया जाना। दृष्टिवाद के अठासी सूत्रोंका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि नन्दीकी तरह कथन कर लेना चाहिये । समवायांग में द्वादशांगका वर्णन नन्दीसे प्रायः अक्षरशः मेल खाता है। अतः डा. वेबर का कहना था कि हमें यह विश्वास करनेके लिये बाध्य होना पड़ता है, कि नन्दी और समवायमें पाये जाने वाले समान वर्णनोंका मूल आधार -' बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेख विहाणे पं० तं०-वंभी. जवणी, लियादोसा, ऊरिया, खरोट्टिया, खरसावित्रा, पहाराइना, उच्चत्तरिया, अक्खर पुट्ठिया, मोगवयता, वेणतिया, णिण्हइया, अंकलिवि, गणिय लिवी, गंधव्वलिवी, भूयालिवी, भादंसलिवी, माहेसरीलिवी, दामिलिवी, बोलिंदीलिवी ।-सम०, पृ० ३३उ० । २- 'दिडिवायस्स णं छायालीसं माउयापया पं० । बंभीए णं लिवीए छायालीसं माउयक्खरा पं०....।।४६।। -सम० ३–'तिरहं गणिपिडगाणं प्राचार चूलियावजाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पं० .....।। ५७ सू०।- सम० । ४-'दिद्विवायस्य णं अट्ठासीइ सुत्ताई पं०,तं०-- उज्जुसुयं परिणयापरिणयं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियव्वाणि जहा नन्दीए ...॥ सू० ८८।।-सम० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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