________________
६५४
जै० सा० इ० पू०पीठिका नन्दी है। और यह कार्य समवायके संग्राहकका या लेखकका होना चाहिये । आगे डा० वेबरने लिखा है कि 'किन्तु हमारे इस अनुमानमें एक कठिनाई है और वह यह है कि नन्दी और समवायके ढंगमें अन्तर है। किन्तु समवायसे नन्दी की विषयसूची बहुत संक्षिप्त है। इससे यह प्रमाणित होता है कि नन्दीमें दत्त विषयसूची प्राचीन है। इसके सिवाय नन्दीमें उक्त द्वादशांगकी विषयसूचीको लेकर जो पाठभेद पाये जाते हैं, निश्चय ही समवायके पाठोंसे उत्तम तथा प्राचीन हैं।'
नन्दी और समवायमें प्रत्येक अंगोंके पदोंका प्रमाण दिया है। किन्तु पदके अक्षरोंका प्राचीन प्रमाण श्वेताम्बर परम्परामें लुप्त हो चुका था। जो श्वेताम्बरीय आगम ग्रन्थ उपलब्ध है उन सबमें उनका ग्रन्थ परिमाण ३२ अक्षरका ग्रन्थ ( श्लोक ) के हिसाबसे दिया है। नीचे प्रत्येक अंगके ग्रन्थानका परिमाण तथा उल्लिखित पदोंका प्रमाण दिया जाता है। अंग ग्रन्थ प्रमाण पद संख्या (जो नन्दि दिगम्बर (श्लोक ३२ अक्षर) में बतलाई है) (पद संख्या)
२५५४ १८००० पद १८००० २३०० ३६००० "
३६००० ७२००० "
४२००० १६०७ १४४००० " १६४००० १५७४० २८८००० नं.
२२८००० ८४००० स०
१८४००० भग० ५-ई० ए०, जि० १८ पृ० ३७४ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org