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________________ श्रुतपरिचय दस दशाओंमेंसे अन्तिम संखेविय दसाके दस अध्ययनोंके नाम इस प्रकार बतलाये हैं - खुद्दिया विमाण पांवभत्ती, मल्लिया विमाण विमाण पविभत्ती, अगचूलिया, वग्ग चूलिया, विवाह चूलिया, अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाते, वेलंधरोववाते, वेसमणोववाते ( स्था. सू० ७५५ ) । किन्तु नन्दि० में इन सबको श्रणंग पविट्ठ'की सूची में गिनाया है। स्थानांगके सातवें अध्ययनमें सात निन्हवोंके नामोंका पाया जाना भी उल्लेखनीय है। सत्यका अपलाप करने को और करने वालोंको निन्हव के नाम से पुकारा जाता है। श्वेताम्बर सम्प्रदायमें ऐसे सात निन्हव माने गये हैं। पीछे से इनमें आठवाँ निन्हव वोटिक' और सम्मिलित कर लिया गया। स्थानांग में सात का ही निर्देश होने से कहना होगा कि इसकी रचना के समय तक दिगम्बरों को निन्हव में नहीं गिनाया गया था । इन सात निन्हवोंमें से दो का प्रादुर्भाव तो भगवान महाबीर की मौजदगीमें ही हो गया था और शेष पाँच उनके बाद उद्भूत हुए। इनमें से अन्त का सातवाँ निन्हव वीर निर्वाणसे ५८४ वर्ष बाद हुआ। अतः प्रकृत स्थानांग सूत्र भी उसके बाद का ही होना चाहिये। ___ स्थानांग सूत्र की टीका सम्बत् ११२० में नवाङ्ग वृत्तिकार अभयदेवने अणहिल पाटनमें अजित सिंह के शिष्य यशोदेव गणिकी सहायतासे बनाई थी। धर्मसागर गुर्वावलीके अनुसार अभय देवका स्वर्गवास सं० ११३५ में हुआ। ४. समवायाङ्ग--समवाय में सब पदार्थोंके समवाय का विचार किया जाता है (त० वा०, पृ० ७३ )। षट्ख०, पु० १. पृ० १०१)। द्रव्य क्षेत्र काल और भावों के समवायका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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