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श्रुतपरिचय हैं और पद्य रूप भी हैं जैसाकि बौद्ध साहित्यमें प्रायः देखा जाता है। कभी दूरतक गद्यात्मक सूत्र चले गये हैं, तो कभी गद्य पद्यात्मक और कभी केवल पद्यात्मक । (हि० इं० लि०, भा० २,, पृ० ४१५.४३६ )।
इस प्रकार प्रथम श्रुत स्कन्धमें नौ अध्ययन हैं। दूसरे श्रुतस्कन्धौ १६ अध्ययन हैं-पिंडेसणा १, सेज्जा (शय्या) २,, इरिया ( ई ) ३, भासाजायं ४, वत्थेसणा ( वस्त्रैषणा) ५, पाएसणा ( पात्रैषणा ' ६, उग्गह पडिमा ७, सात सत्तिक्कया १४, भावणा १५, और विमुत्ती १६। इस तरह सब पच्चीस अध्ययन हैं । अब चौबीस हैं। प्रथम श्रुत स्कन्धमें ४४ और दूसरेमें ३४ उद्देस हैं । किन्तु पहले ७८ नहीं किन्तु ८५ उद्देसग थे।
दूसरे श्रुत स्कन्धमें मुनि सम्बन्धी आचारोंका ही विशेष रूप से कथन है । डा० विंटरनीट्सका कथन है कि दूसरा श्रुत स्कन्ध प्रथम श्रुत स्कन्धसे बहुत अर्वाचीन है। यह बात उसमें जो चूला हैं, उनसे प्रकट होती है। प्रथम दो चूलाओंमें साधु और साध्वियों के दैनिक आचारका कथन है । उनमें बतलाया है कि. साधुका. कैसे आहार लेना चाहिये, कैसे चलना चाहिये और कैसे जीवनयापन करना चाहिये । तीसरी चूलामें भगवान महावीरकी जीवनी है। स्कन्धके अन्तमें बारह पद्य हैं जिनमें वर्णित विषय बौद्ध थेर गाथाओंका स्मरण कराता है (हि० इं० लि., जि० २, पृ० ४३८)
आचारांग सूत्रपर नियुक्ति है जिसे भद्रवाहु कृत कहा जाता है। एक चूर्णि है और शीलांक (८७६ ई०) की टीका है।
२ सूत्रकृतांग-ज्ञानविनय, प्रज्ञापन, कल्प्याकल्प्य, छेदोपस्थापना तथा व्यवहार धर्मका कथन करता है ( त० वा०, पृ०
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