SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रुतपरिचय ५८६. ये नौ पदार्थ स्वतः परतः, नित्य और अनित्य इन चार विकल्पों के द्वारा तथा काल, ईश्वर, आत्मा. नियति, और स्वभाव इन पाँच विकल्पोंके द्वारा हैं। अतः इनको परस्पर में गुणा करने से ६x४४५ = १८० विकल्प होते हैं। इतने ही क्रियावादियोंके प्रकार हैं। दिगम्वर तथा श्वेताम्बर साहित्यमें वर्णित इनकी प्राक्रयामें थोड़ा अन्तर है। दिगम्बर ' प्रक्रियाके अनुसार इन विकल्पोंका कथन इस प्रकार होगा-स्वतः जीव कालकी अपेक्षा है, परतः जीव कालकी अपेक्षा है। और श्वेताम्बर प्रक्रियाके अनुसार इनका कथन इस प्रकार होता है-जीव स्वतः कालको अपेक्षा नित्य है, अजीव स्वतः कालकी अपेक्षा अनित्य ही है ।२ । जीवादि पदार्थ नहीं हैं, इस प्रकारका कथन करने वाले अक्रियावादी कहे जाते हैं। जो पदार्थ नहीं उसकी क्रिया भी नहीं है। यदि क्रिया हो तो वह पदार्थ 'नहीं' नहीं हो सकता, ऐसे कहने वाले अक्रियावादी कहे जाते हैं। 'नास्ति' एक, स्वतः और परतः ये दो, जोवादि सात पदार्थ १-'अत्थि सदो परदो विय णिच्चाणिच्चत्तणेण य णवत्था ।' कालीसरप्यणियदिसहावेहि य ते हि भंगा हु ॥७८७||-गो. क.। २-'नास्त्येव जीवादिकः पदार्थ इत्येवं वादिनः अक्रियावादिनः।' - सूत्र. शी. टी., १-१२ । 'प्रक्रियां क्रियाया अभावम्, न हि कस्यचिदप्यनवस्थितस्य पदार्थस्य क्रिया समस्ति, तद्भावे च अनवस्थितेरभावादित्येवं ये वदन्ति ते अक्रियावादिनः।-भ. सू., अभ.टी.३०-१ । स्था. अभ. टी., ४-४-३४५ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy