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जै० सा० इ०-पूर्व पोठिका सिन्धुघाटी सभ्यतासे सम्बद्ध है तो वह अवश्य ही नग्नताका उपासक होना चाहिये।
संघ भेदका काल संघ भेदके कारण वस्त्रको समस्या पर विस्तारसे प्रकाश डालने के पश्चात् हम पुनः संघ भेदके कालकी ओर आते हैं।
श्रीमती स्टिवेन्सनने (हा. जै०, पृ० ७६) लिखा है- 'संभावना यह है कि जैन समाजमें सदासे दो पक्ष रहे हैं- एक वृद्धों
और कमजोरोंका, जो पार्श्वनाथके समयसे वस्त्र धारण करते आते हैं और जिसे स्थविरकल्प कहते हैं । यह स्थविरकल्पी पक्ष श्वेताम्बर सम्प्रदायका पूर्वज है और दूसरा पक्ष जिनकल्प है, जो नियमोंका अक्षरशः पालन करता था, जैसाकि महावीरने किया था, यह पक्ष दिगम्बरोंका अग्रज है।' ___ श्रीमतीजीकी इस संभावनामें हमें भी सत्यांश प्रतीत होता है क्योंकि उत्सर्ग अपवाद सापेक्ष्य होता है। अत: उत्सर्ग मार्गमें वृद्ध
और कमजोरोंके लिये कुछ अपवादोंकी छूट होना संभव है। किन्तु जैसा उत्सर्ग अपवाद सापेक्ष्य होता है वैसे ही अपवाद भी उत्सर्ग सापेक्ष्य होता है। परन्तु यदि अपवादको ही उत्सर्ग मान लिया जाये और उत्सर्गकी सर्वथा उपेक्षा कर दी जाये तो उत्सर्ग और अपवाद मागियोंमें अलगाव होजाना ही अधिक संभव है। और यही संभावना जैनसंघके भेदके मूलमें जान पड़ती है। ___ श्वेताम्बर साहित्यके आधारसे यह बतला आये हैं कि भगवान महावीरके समयमें जो पार्श्वनाथकी परम्पराके साधु थे वे प्रायः शिथिलाचारी हो गये थे और उनमेंसे अनेकोंने महावीरके सन्मुख चतुर्याम धर्मसे पञ्च महाव्रत रूप धर्मको अंगीकार किया
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