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संघ भेद
संग्रह, भण्डार, बंटवारा, रंगाई, धुलाई आदिके लिये व्यवस्थापक नियुक्त करने पड़े । बौद्ध भिक्षुओंकी इस प्रकारकी प्रवृत्तियों का भी प्रभाव मगधवासी सुखशील जैन साधुओं पर अवश्य पड़ा।
जैन मूर्तिकला से भी नग्नताका ही समर्थन होता है। एक भी प्राचीन जैन मूर्ति ऐसी नहीं मिली है जो सवत्र हो अथवा जिसके गुह्य प्रदेश में वस्त्रका चिन्ह अंकित हो । मथुरा के कंकाली टीलेसे प्राप्त सभी मूर्तियाँ नग्न हैं । सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री वीसेण्ट स्मिथने 'दी जैन स्तूप एण्ड अदर एन्टीकुटीस आफ मथुरा' नामक पुस्तक प्रकाशित की थी । उसमें बहुत सी जिन प्रतिमाओं के चित्र भी दिये हैं, जिनमें कुछ प्रतिमाएँ बैठी हुई हैं और कुछ खड़ी हुई हैं। बैठी हुई मूर्तियों पर बत्रका कोई चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं होता । परन्तु खड़ी मूर्तियाँ स्पष्ट रूप से नग्न हैं, और उनपर अंकित लेखों में जो गण गच्छ आदि दिये हुए हैं वे श्व ेताम्बर ग्रन्थ कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार दिये हुए हैं। उनसे भी पूर्वकी मौर्य - कालीन जो जैन मूर्ति पटना के संग्रहालय में सुरक्षित है, वह भी नग्न है । यह मूर्ति हड़प्पासे प्राप्त एक मूर्तिकी हूबहू प्रतिकृति है । हड़प्पासे प्राप्त मूर्ति अकृत्रिम यथाजात नग्न मुद्रा वाले एक सुदृढ़ युवा की मूर्ति है। भारत सरकार के पुरातत्त्व विभागके संयुक्त निर्देशक श्री टी० एन० रामचन्द्रन्का इसके विषय में कहना है कि 'हड़प्पाकी मूर्ति काके उपरोक्त गुण विशिष्ट मुद्रा में होनेके कारण यदि हम उसे जैन तीर्थङ्कर अथवा ख्यातिप्राप्त तपोयुक्त जैन सन्त की प्रतिमा कहें तो इसमें कुछ भी असत्य न होगा' ।
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अत: जैन मूर्तिकला की दृष्टिसे भी जैन परम्परा में नग्नताका ही प्रचलन प्रकट होता है। यदि जैन धर्म वैदिक धर्मसे प्राचीन
१ -- अनेकान्त, वर्ष १४, कि० ६, पृ० १५८ |
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