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________________ संघ भेद ४५६. कारण नहीं जान पड़ता । उसके मूल में कुछ अन्य कारण भी हैं,. जैन और बौद्ध उल्लेखोंसे जिनका समर्थन होता है। डा० हार्नलेने लिखा है कि इस जैन वक्तव्यकी, कि गोशालक एक कुम्हारीके घर में रहा था, सत्यतामें सन्देह करनेका कोई कारण प्रतीत नहीं होता । यह कार्य गोशालक के वास्तविक चरित्र पर प्रकाश डालता है और गोशालक के प्रति बुद्धके घृणा भावसे भी उसका समर्थन होता है' - इं० इ० रि०, जि० १, पृ० २६० । वे और भी कहते हैं— 'गोशालकका एक स्त्री स्थानको अना मुख्य आवास बनाना बतलाता है कि गोशालकका मतभेद सैद्धान्तिक नहीं था, किन्तु चरित्र विषयक था । पार्श्व के चार यामों में परिवर्तन करके महावीरने ब्रह्मचर्यको पृथक स्थान दिया था । इससे मालूम होता है कि पार्श्व के कमजोर साधुयोंमें अनैतिकता प्रवेश कर गई थी। इसी बात परसे गोशालक महावीर से पृथक हो गया ।' पार्श्वपत्य और गोशालक डा० हार्नले उक्त कथनका स्पष्टीकरण करनेके लिये पार्श्व - पत्ययों और गोशालकके पारस्परिक सम्बन्ध में प्रकाश डालना आवश्यक है । भगवती सूत्र में (१५-१ ) लिखा है कि एक समय गोशालक - के समीप छै दिशाचर आये। टीकाकारने दिशाचरोंको पार्श्वस्थ और चूर्णिकारने पार्श्वपत्यीय बतलाया है। अर्थात् वे पार्श्वनाथकी परम्पराके थे । वे छहों अपनी बुद्धिसे पूर्वगत आठ महा निमित्तोंका विचार करते थे । वे आठ महानिमित्त हैं - दिव्य, उत्पात, अन्तरिक्ष, भौम, स्वर, अंग, लक्षण और व्यंजन । इनसे प्राणियों 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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