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________________ संघ भेद ४५५ बौद्ध निर्गन्थोंको एक प्रनुख सम्प्रदाय मानते थे जब कि जैन अपने विरोधियोंकी परवाह नहीं करते थे। यह तो हुई बुद्धके समय निग्रन्थ सम्प्रदायकी स्थिति जिसके प्रमुख निग्रन्थ ज्ञातृपुत्र महावीर थे। महावोरके सम्बन्धमें डा० याकोवीने जैन सूत्रों के प्रथम भागकी अपनी प्रस्तावनामें उनके मातृकुल और पितृकुलका परिचय देते हुए लिखा है कि यह हम इसलिये दे रहे हैं कि हम इसके ज्ञानसे यह जान सकने में समर्थ हो सकें कि महावीर अपने मिशनमें सफलता कैसे प्राप्तकर सके। ___ जहाँ तक ज्ञात होता है पितृकुल और मातृकुल के सम्बन्धोंकी दृष्टिसे महावीरकी लौकिक स्थिति बुद्धसे यदि इक्कीस नहीं थी तो उन्नीस भी नहीं थी। तथा वह प्राचीन निग्रन्थ सम्प्रदायके तीर्थङ्कर थे। बौद्ध निकाय ग्रन्थोंमें यत्र तत्र उनकी चर्चा करते हुए लिखा है कि बड़ी भारी निर्ग्रन्थोंकी परिषदके साथ निगंठ नाटपुत्त अमुक जगह वास करते थे। इसके विपरीत गोशालक कुलकी दृष्टिसे हीन था, मांगता खाता फिरता था। अब वह महावीरके पास आया तब उसकी कोई स्थिति नहीं थी। बौद्ध निकाय ग्रन्थोंमें यद्यपि छै शास्ताओंमें उसका नाम भी सर्वत्र आता है, किन्तु मुझे तो एक भी ऐसा उल्लेख नहीं मिला, जहाँ उसे भी आजीविकोंकी बड़ी परिषदके साथ वास करता बतलाया हो, उत्तरा० सूत्र० के आद्रक और गोशालक संवादमें गोशालक महावीर भगवानपर यह आरोप लगाता है कि पहले महावीर एकाकी रहते थे और अब बहुतसे निग्रन्थोंके साथ रहते हैं। इस पर डा० हानलेने लिखा है कि-गोशालकके साथ भी बहुतसे आजीविक रहते थे। अतः संघके प्रमुखका बहुतसे साधुओंसे घिरे रहना कोई दोष नहीं है। किन्तु इस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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