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________________ ૪૫૪ जै० सा० इ० - पूर्वपीठिका अतः डा० या कवीका यह कथन कि महावीरने गोशालकका अनुसरण किया ठीक नहीं प्रतीत होता । 'महावीर और गोशालकके मिलनका उद्देश्य' डा० याकोबी ने लिखा है- 'महावीरने जो आजीविकोंके कतिपय धार्मिक विचारों और क्रियाओं को अपनाया, इसे हम एक प्रकारका उपहार मानते हैं जो गोशालक और उनके शिष्यों को अपने वश में करनेके लिये दिया गया था । ऐसा लगता है कि यह कुछ समय तक तो सफल हुआ, किन्तु अन्त में दोनों परस्पर में गड़ गये । और यह अनुमान करना शक्य है कि झगड़ा इस बात पर हुआ कि सम्मिलित सम्प्रदायका प्रमुख कौन बने ? गोशालक के साथ अस्थायी सन्धि कर लेनेसे महावीरकी स्थिति दृढ़ हो गई । यदि हम जैनोंके विवरण पर विश्वास करें तो गोशालकका दुखद अन्त उसके सम्प्रदाय के लिये अवश्य ही भयानक आघात हुआ ।' ( से० बु० ई०, जि० ४५, पृ० ३० ) उक्त कथनसे यही प्रकट होता है कि महावीरने गोशालकको प्रसन्न करनेके लिये उसके कुछ आचार अपनाये और गोशालक के साथ अस्थायी सन्धि करनेसे महावीरकी स्थिति दृढ़ हो गई । Jain Educationa International प्रथम बातके सम्बन्धमें हम प्रकाश डाल चुके हैं। अतः यहाँ दूसरीके सम्बन्धमें डालते हैं। डा० याकोवीने जैन सूत्रोंकी अपनी उसी प्रस्तावना में, जिसमें उक्त बात कही है, लिखा है कि 'जब बौद्ध धर्म स्थापित हुआ उस समय निग्रन्थ एक प्रमुख सम्प्रदायके रूप में वर्तमान थे । तथा अन्यत्र बौद्ध ग्रन्थोंमें निगन्थोंका बहुतायत से उल्लेख तथा इसके विपरीत जैन आगमों में बौद्धोंका किचित भी निर्देश न देखकर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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