________________
'४४४
० सा० इ० पूर्व-पीठिका . लिखा है-'इस सम्बन्धमें यह उल्लेख करना मनोरंजक है कि बुद्धघोषने अपनी टीकामें जो गोशालकके मनुष्य जातिको छै भागोंमें विभाजित करनेवाले सिद्धान्तका कथन किया है वह अंगुत्तर निकायके आधार पर किया है और अंगुत्तर निकायमें इस सिद्धांत को पूरणकाश्यपका बतलाया है। यदि यह केवल मूल ग्रन्थसे सम्बन्धित भूल नहीं है तो यह प्रमाणित करती है कि मनुष्य विभाग वाला सिद्धान्त बुद्धके विरोधी छैो शास्ताओंके लिये समान रूपसे मान्य था।'-इं० इ० रि०, जि० १, पृ. २६२ । ____ उक्त स्थितिमें इकतरफा निर्णय नहीं किया जा सकता। इसी तरहकी कतिपय समानताओंको देखकर कुछ विद्वानोंने जैन धर्मको बौद्ध धर्मकी एक शाखा समझ लिया था। उसका निराकरण करके डा• याकोवीने जैन धर्मको एक स्वतंत्र और बौद्ध धर्मसे प्राचीन सिद्ध किया । तब जैनों और आजीविकोंकी कतिपय बातों में समानता देखकर यह निर्णय नहीं किया जा सकता कि जैनोंने
आजीविकोंसे अमुक बात ली है या महावीरके धर्म पर गोशालक का बड़ा प्रभाव पड़ा।
आचार सम्बन्धी नियम महावीरके आचार सम्बन्धी नियमों पर गोशालकका प्रभाव बतलाते हुए डा० याकोवीने लिखा है-'आचार सम्बन्धी नियमों के सम्बन्धमें संगृहीत प्रमाण करीब करीब यह प्रमाणित करनेकी स्थितिमें हैं कि महावीरने अधिक कठोर आचार गोशालकसे लिये हैं क्योंकि उत्तराध्ययनमें ( २३ अ० गा० १३) कहा है कि पाश्वका धर्म 'सान्तरोत्तर' था-साधुको एक अन्तर वस्त्र और एक उत्तर वस्त्र धारण करनेकी अनुमति देता था। किन्तु महावीरके धर्ममें साधुके लिये वस्त्रका निषेध था। जैन सूत्रोंमें नंगे साधुके
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org