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भगवान् महावीर
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उत्तर-गणधर न होने से।
प्रश्न-सौधर्म इन्द्रने केवल ज्ञान होनेके समय ही गणधरको उपस्थित क्यों नहीं किया ?
उत्तर-काललब्धिके बिना सौधर्म इन्द्र गणधरको उपस्थित करने में असमर्थ था।
प्रश्न-जिसने अपने पादमूलमें महाव्रत स्वीकार किया है ऐसे पुरुषको छोड़कर अन्यके निमित्तसे दिव्यध्वनि क्यों नहीं खिरती।
समाधान-ऐसा ही स्वभाव है और स्वभावके विषयमें कोई प्रश्न नहीं किया जा सकता। ___उक्त प्रश्नोत्तरोंसे ज्ञात होता है कि केवल ज्ञान उत्पन्न होनेके पश्चात् जो व्यक्ति तीर्थङ्करके पादमूलमें दीक्षा लेकर उनका शिष्यत्व स्वीकार करता है वही उनका गणधर बननेका अधिकारी होता है। छियासठ दिन तक किसी ऐसे व्यक्तिने महावीर भगवानके पादमूलमें दीक्षा लेकर उनका शिष्यत्व स्वीकार नहीं किया, जो इनका गणधर बननेकी योग्यता रखता हो। ___ जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, श्वेताम्बरीय मान्यताके अनुसार जम्भिका ग्राममें केवल ज्ञान प्रकट होने पर भी महावीर भगवानकी धर्मदेसना इसलिये नहीं हुई कि वहाँ कोई ऐसा व्यक्ति उपस्थित नहीं था जो उनके पादमूलमें चारित्र धारण करके उनका शिष्यत्व स्वीकार कर सकता हो। दूसरे दिन महासेन नामक उद्यानमें इन्द्रभूति आदिके उनका शिष्यत्व स्वीकार करने पर ही उनकी धर्मदेशना हुई । अतः केवल ज्ञान प्रकट होनेके पश्चात् ही भगवान् महावीरकी धर्मदेशना न होने के सम्बन्धमें दोनों सम्प्रदायों की मान्यतामें प्रायः एकरूपता है । अन्तर है प्रथम देशनाके स्थान और काल में।
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