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________________ २६२ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका आकाशमें अभिजित् नक्षत्रका उदय रहते हुए राजगृही नगरीके बाहर स्थित विपुलाचलपर महावीरकी प्रथम धर्मदेशना हुई। केवल ज्ञान होने पर भी छियासठ दिन तक धर्मदेशना न होनेका कारण बतलाते हुए जयधवला (भा० १, पृ० ७५-७६) में प्रश्नोत्तर रूपमें जो विवरण दिया गया है यहाँ हम उसे उद्धृत किये देते हैं। प्रश्न-केवलिकालमेंसे छियासठ दिन किसलिये कम किये गये हैं ? ___ उत्तर-भगवान महावीरको केवल ज्ञान हो जाने पर भी छियासठ दिन तक धर्मतीर्थकी उत्पत्ति नहीं हुई थी, इसलिये केवलिकालमें छियासठ दिन कम किये गये हैं। प्रश्न-केवलज्ञान उत्पन्न हो जाने पर भी छियासठ दिन तक दिव्यध्वनि क्यों नहीं खिरी ? एत्थावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिमभागम्मि । तेत्तीसवास अडमास पण्णरस दिवससेसम्मि ॥६८।। वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुल पडिवाए । अभिजीणक्खत्तम्मि य उप्पत्ती धम्मतित्थस्स ॥६६॥ -ति० १०१। श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभुः ।। प्रतिपद्यहि पूर्वाण्हे शासनार्थमुदाहरत् ।।६१॥ -हरि० पु०, २ सर्ग । १ पञ्चसेलपुरे रम्मे विउले पव्वदुत्तमे । णाणादुमसमाइण्णे देवदाणववंदिदे ॥५२॥ महावीरेणत्थो कहियो भवियलोयस्स । -धवला, पु० १, पृ० ६१ पर उद्धृत । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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