________________
.. भगवान् महावीर फिर प्रश्न किया गया कि किस काल में भगवान महावीरने धर्मतीर्थका प्रवर्तन किया। इसका उत्तर देते हुए लिखा है कि'इस भरक्षक्षेत्र सम्बन्धी अवसर्पिणी कालके चौथे दुषम सुषमा नामक कालमें तेतीस वर्ष, छै मास और नौ दिन अवशिष्ट रहने पर धर्मतीर्थकी उत्पत्ति हुई।'
इस कालका विवरण देते हुए लिखा है कि-'चौथे कालमें ७५ वर्ष आठ मास, १५ दिन शेष रहने पर आषाढ़ शुक्ला षष्ठीके दिन बहत्तर वर्षकी आयु लेकर भगवान महावीर गर्भमें आये। बहत्तर वर्षों में तीस वर्ष कुमार काल है, बारह वर्ष छद्मस्थकाल ( तपस्याकाल) है तथा तीस वर्ष केवलिकाल है। इस बहत्तर वर्ष प्रमाण कालको ७५ वर्ष ८ मास १५ दिन काल में घटा देने पर महावीरके मोक्ष जाने पर शेष बचे चतुर्थ कालका प्रमाण आता है। इस कालमें छियासठ दिन कम केवलिकालको मिला देनेपर अर्थात् तीन वर्ष, आठ मास, पन्द्रह दिनमें २६ वर्ष, नौ मास, २४ दिन मिला देनेपर तेतीस वर्ष छह महीना, नौ दिन होते हैं। चौथे कालमें इतना शेष रहने पर भगवान महावीरने धर्मतीर्थका प्रवर्तन किया अर्थात् प्रथम धर्मदेशना की।
अतः दिगम्बर परम्पराके अनुसार केवलज्ञान होनेके छियासठ दिन पश्चात् श्रावणकृष्णा' प्रतिपदाके दिन प्रातःकालके समय १ इम्मिस्सेऽवसप्पणीए चउत्थसमयस्स पच्छिमे भाए ।
चोत्तीसवाससेसे किंचि विसेसूणए संते ॥५५॥ वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले । पाडिवदपुन्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि ।।५६॥ सावणबहुलपडिवदे रुद्दमुहुत्ते सुहोदए रविणो । अभिजिस्स पढमजोए जत्थ जुगादी मुणेयन्यो ॥५७॥
-धवला, पु० १, पृ० ६२-६३ में उद्धृत ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org