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भगवान् महावीर हैं, अहेतुक नही हैं, क्योंकि कर्मको अहेतुक माननेसे उनका विनाश नहीं बन सकता । अतः कर्म सहेतुक हैं तथा मूर्त हैं ।
और वे जीवसे सम्बद्ध हैं। क्योंकि यदि कर्मको जीवसे सम्बद्ध न माना जायगा तो कर्मका कार्य जो मूर्त शरीर है, उस मूर्त शरीर से जीवका सम्बन्ध नहीं बन सकता । अर्थात् यदि कर्मों से जीव को भिन्न माना जायगा तो कर्मोंसे भिन्न अमूर्त जीवका शरीरके साथ सम्बन्ध नहीं बन सकता। और शरीरके साथ जीवका सम्बन्ध सिद्ध है; क्योंकि शरीरके छेदे जाने पर जीवको दुःख होता है, जीवके गमन करने पर शरीर भी गमन करता है। जीवके रुष्ट होनेपर शरीरमें कम्प, दाह, आंखोंका लाल होना, भौंका चढ़ना आदि देखे जाते हैं। तथा जीवकी इच्छासे शरीरका गमन, आगमन, हाथ पैर सिर अंगुली आदिका संचालन देखा जाता है। अतः जीव शरीरसे सम्बद्ध है। यदि जीवको शरीर और कर्मोंसे असम्बद्ध माना जायगा तो सम्पूर्ण जीवोंके केवल ज्ञान, केवल दर्शन, अनन्तवीर्य आदि गुण प्रकट दीखने चाहिये जैसा कि मुक्तात्माओंमें देखा जाता है । अतः जीवका कर्मके साथ भी एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध मानना चाहिये।
यह शंका हो सकती है कि अमूर्त जीवका मूर्त शरीरके साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है। किन्तु जैन सिद्धान्तमें जीव और कर्मोंका अनादि सम्बन्ध स्वीकार किया गया है अतः उक्त शंकाको स्थान नहीं है। इस तरह जीव और कर्मोंका सम्बन्ध अनादि है। यदि उसे अनादि न माना जायगा तो वर्तमानमें भी जो जीव और कर्मका सम्बन्ध उपलब्ध होता है वह नहीं बन सकेगा।
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