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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका है। 'वैशालिक' का अर्थ स्पष्ट रूपसे 'वैशालीका वासी' होता है।
और जब कुण्डग्राम वैशालीका बाह्य भाग था तो महाबीरको वैशालिक कहना उचित ही है।'
कुण्डग्राम वैशालीका ही एक वाह्य भाग था इसके समर्थनमें डा० याकोबीने बौद्ध साहित्यके आधारसे एक उपपत्ति दी है जो इस प्रकार है
'बौद्ध ग्रन्थ महावग्गमें हम पढ़ते हैं कि जब बुद्ध 'कोटिग्गाम' में थे तो निकटवर्ती राजधानी वैशालीके लिच्छवि और गणिका अम्बपाली उनके दर्शनार्थ आये थे। कोटिगगामसे वे नातिकाओंके निवासस्थानपर गये। वहाँ वे नातिका भवनमें ठहरे। नातिका भवनके निकट गणिका अम्बपालीका आम्रपालीबन' नामक उद्यान था। नातिकासे बुद्ध वैशाली गये जहाँ उन्होंने निग्रन्थोंके गृहस्थ शिष्य सेनापति सिंहको बौद्ध धर्ममें दीक्षित किया। अतः यह बहुत कुछ सम्भव है कि बौद्धोंका कोटिग्गाम ही जैनोंका कुण्डग्राम हो। नामोंकी समानताके सिवाय नातिकाओंका निर्देश भी इसीका समर्थन करता है क्योंकि नातिका स्पष्ट ही ज्ञात्रिक क्षत्रियोंका सूचक है। महावीर इन्हीं ज्ञात्रिक क्षत्रियोंके वंशज थे। अतः सम्भवतया कुण्डग्राम विदेह की राजधानी वैशालीके उपनगरोंमेंसे था।' (से० बु० ई०जि०२२, प्रस्ता०, पृ० ११) ___महापरिनिव्वाणसुत्तके राहुलजीकृत हिन्दी अनुवादके अनुसार बुद्ध राजगृहीसे अम्बलट्ठिका गये, वहाँसे नालन्दा, नालन्दासे पाटलिग्राम गये । उस समय मगधके महामात्य वजियोंको रोकनेके लिये पाटलिग्राममें पाटलीपुत्रनगरका निर्माण करते थे। पाटलिग्राममें गंगा नदीको पार करके बुद्ध
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