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________________ भगवान् महावीर २२७ इसी तरह भगवान महावीरको 'नाए नायपुत्ते नायकुलनिव्वत्ते विदेहे विदेहजच्चे विदेह सूमाले तीसं वासाइं विदेहं सित्ति कट्ट, अगारमझे वसित्ता' (आचा० सू० २-३-४०२ सू०) इत्यादि लिखा है। जिसका आशय है कि भगवान महाबीर नाथ या ज्ञात. कुलके और विदेह देश के थे। .. किन्तु सूत्रकृताङ्ग' में भगवान महावीरको वैसालिय ( वैशालिक) कहा है। परन्तु श्वे० अंग ग्रन्थोंके प्रसिद्ध टीकाकार शीलाङ्कको भी 'वैशालिक' शब्दका ठीक-ठीक अर्थ ज्ञात नहीं था, ऐसा प्रतीत होता है। उन्होंने एक श्लोक उद्धृत करके भगवानको वैशालिक कहने में तीन हेतु दिये हैं-'उनकी माता विशाला' थी, वे विशाल कुलमें उत्पन्न हुए थे, तथा उनके वचन भी विशाल थे। इसलिये उन्हें वैशालिक कहते थे।' इसके सम्बन्धमें डा० याकोवीने (से० बु० ई०, जि० २२ की प्रस्ता०, पृ० ११) में लिखा है-'यह मतिभेद प्रमाणित करता है कि वैशालिक शब्दके वास्तविक अर्थक विषयमें कोई प्रामाणिक परम्परा नहीं थी। अतः उत्तरकालीन जैनोंने 'वैशालिक' का जो बनावटी अर्थ किया, उसकी पूर्ण उपेक्षा करना न्याय्य ही १-अरहा नायधुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥ २२ ॥ -सू० १ श्रु०; २ अ, ३ उ० । २-'अर्हन् सुरेन्द्रादिपूजा) ज्ञातपुत्रो बर्द्धमान स्वामी ऋषभ स्वामी वा भगवान् ऐश्वर्यादिगुणयुक्तो विशाल्यां नगयों वर्धमानोऽस्माकमाख्यातवान् । ऋषभस्वामी वा विशालकुलोद्भवत्वाद् वैशालिकः । तथा चोक्तम्-विशाला जननी यस्य विशालं कुलमेव वा । विशालं वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः।'--सूत्र० १ श्रु०, २ अ०, ३ उ०, २२ सूत्र । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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