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________________ २१६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका हो सकता है चुन्द ! दूसरे मतवाले साधु ऐसा कहें - इन चार सुखोपभोग आराम पसन्दगीसे युक्त हो शाक्यपुत्रीय श्रमण विहार करते हैं। उन्हें कहना चाहिये-ऐसी बात नहीं है। उनके विषयमें ऐसा मत कहो, उन पर झूठा दोषारोपण न करो । इससे स्पष्ट है कि बुद्धके मतमें चार यामोंका पालन करना ही तपश्चर्या मानी जाती थीं । अतः बुद्धने पार्श्वनाथके चातुर्याम धर्म: को स्वीकार किया था। ___ डा. याकोवीने 'महाबीर और उनके पूर्वज' शीर्षक अपने एक लेख में लिखा है कि छै तीथिकोंके सम्बन्धमें 'जेम्स डी अलविस (James D -Alvis' ) ने अपने एक निबन्धमें लिखा था कि ऐसा प्रकट होता है कि 'दिगम्बर' साधुओंका एक प्राचीन सम्प्रदाय माना जाता था । तथा ये सभी विपक्षी तीर्थिक अपने सिद्धान्तोंमें अथवा धार्मिक क्रियाओंमें जैन धर्मके प्रभावको अपनाये हुए थे -गोशाल मक्खलिपुत्र नंगा रहता था, पूरण काश्यपने यह सोचकर कि दिगम्बर रहनेसे मेरी विशेष प्रतिष्ठा रहेगी, वस्त्र धारण करना स्वीकार नहीं किया। अजितकेश कम्वली वृक्षोंमें जीव मानता था और जो वृक्ष काटता था उसे दोषी करार देता था। प्रक्रुद्ध कात्यायन पानी में जीव मानता था। इस तरह उस समयके चार तोर्थिक जैन धर्मके सिद्धान्तोंसे प्रभावित थे । इससे प्रकट होता है कि महावीरके समय जैनाचार और विचार अवश्य ही प्रवर्तित थे। अतः निग्रन्थ महावीर से बहुत पहलेसे चले आते थे । ( इन्डि० एण्टि. जि०६)। बौद्ध त्रिपिटिकसे यह प्रकट है कि बुद्धके समय भारतवर्षमें श्रमणोंके कोई ६३ सम्प्रदाय विद्यमान थे। जिनमें से छै बहुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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