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________________ भगवान् पार्श्वनाथ २१५ वुद्धके द्वारा खोजे गये आर्य अष्टांगिक मार्गका समावेश चतुर्याममें हो जाता है ।' (पा० चा०, पृ० २४ )। सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक कर्मान्त, सम्यक् आजीव. सम्यक व्यायाम सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि ये बुद्धका आर्य अष्टांगिक मार्ग है। ___ श्री कौशाम्बीने आगे लिखा है कि इनके अवलोकनसे यह स्पष्ट है कि बुद्धने पार्श्वनाथके चार यामोंको पूर्ण रूपसे स्वीकार कर लिया था। उन यामोंमें उन्होंने अलार कालामकी समाधि और स्वयं खोजकर निकाली गई चार आर्य सत्य रूप प्रज्ञाको जोड़ दिया। तथा उन यामोंको तपश्चर्या और आत्मवादसे मुक्त कर दिया, क्योंकि लगातार वर्षों तक तपस्या करने पर उन्हें लगा कि देह दण्डन व्यर्थ ही नहीं उल्टा हानिकारक भी है। बुद्धने तपश्चर्याका परित्याग कर दिया था इससे लोग उन्हें तथा उनके अनुयायि शिष्यों को आराम पसन्द कहते थे। दीर्घ निकायके पासादिक सुत्तमें ( पृ० २५६ ) बुद्ध चुन्दसे कहते है'चुन्द ! ऐसा हो सकता है कि दूसरे मतवाले परिबाजक ऐसा कहें-शाक्यपुत्रीय श्रमण आरामपसन्द हो विहार करते हैं। ...."चुन्द ! ये चार प्रकारकी आरामपसन्दगो अनर्थ युक्त है -- कोई मूर्ख जीवोंका बध करके आनन्दित होता है, प्रसन्न होता है। यह पहली आराम पसन्दगी है १। कोई चोरी करके आनन्दित होता है यह दूसरी राम पसन्दगी है २ । कोई झूठ बोलकर प्रसन्न होता है यह तीसरी आराम पसन्दगी है। कोई पांचो भोगोंका सेवन करके आनन्दित होता है ये चौथी आराम पसन्दगी है ४ । ये चारों सुखोपभोग निकृष्ट हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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