________________
प्राचीन स्थितिका अन्वेषण निदर्शनोंसे तीनों वेद भरे पड़े हैं। फलतः 'सिंधु कछार संस्कृति पूर्व वैदिक युगके बादकी ऐसी संस्कृति है जिसमें तांत्रिक प्रक्रियायें पर्याप्त मात्रामें घुल मिल गई थीं। प्राचीन साहित्य जैन तीर्थङ्करों तथा बुद्धोंको असंदिग्ध रूपसे क्षत्रिय तथा आर्य कहता है । फलतः जैन धर्म तथा बौद्ध धर्मकी प्रसूतिको अनार्यों में बताना सर्वथा असम्भव है।'
'अतएव जैन धर्मके मूल स्रोतको आर्य संस्कृतिको किसी प्राचीनतर अवस्थामें खोजना चाहिये, जैसा कि बौद्ध धर्मके लिये किया जाता है। अपने पूर्वोल्लिखित निबंध में मैं सिद्ध कर चुका हूं कि समस्त भारतीय साधन सामग्री यह सिद्ध करता है कि जम्बू द्वोपका भारत खण्ड हो आर्योंका आदि देश था। हमारी पौराणिक मान्यताका भारतवर्ष आधुनिक भौगोलिक सीमाओंसे बद्ध न था, अपितु उसके आयाम विस्तारमें पामीर पर्वत माला तथा हिन्दूकुश भी सम्मिलित था अर्थात् ४० अक्षांश तक विस्तृत था। प्राचीनतम जैन तथा वैदिक मतोंके ज्योतिष ग्रन्थों और पुराणों में भारतके उक्त विस्तारका स्पष्ट रूपसे प्रतिपादन किया है।" ____ यहाँ हम यह स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं कि हमने जो आर्योंके भारतमें आगमनकी चर्चाकी है वह भारतकी वर्तमान सीमाको लेकर की है । जैन शास्त्रोंमें जो भारत वर्षका विस्तार बतलाया है उसमें तो आजका पूरा भूखण्ड समा जाता है । अस्तु.
उपसंहार इस तरह प्राग ऐतिहासिक कालीन उपलब्ध साधनोंके द्वारा तत्कालीन स्थितिका पर्यक्षवेण करनेसे जो प्रकाश पड़ता है यद्यपि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org