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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण भी प्राचीन हैं और सिन्धुघाटी सभ्यता तक उनकी परम्परा जाती है।
द्रविड़ सभ्यता और जैन धर्म हम पिछले पृष्ठोंमें लिख आये हैं कि ऋग्वैदिक कालसे ही भारतमें दो विभिन्न विचार धाराएँ प्रवाहित होती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। एक धारा है वैदिक संस्कृतिकी और दूसरी धारा है वेद विरोधी, जिसे विद्वानों ने द्रविड़ विचारधारा या द्रविड़ संस्कृति माना है। प्राचीन द्रविड़ बड़े सुसंस्कृत और सभ्य थे। और उनकी अपनी सभ्यता थी। सिन्धुघाटीसे पूरबकी ओर बढ़नेके पश्चात धीरे-धीरे वैदिक धर्मने जो हिन्दू धर्मका रूप ले लिया. उसका एक प्रमुख कारण वैदिक आर्यों पर द्रविड़ विचार धाराका प्रभाव भी था।
द्रविड़ लोग आर्योंके देवताओं और पुरोहितोंको पसन्द नहीं करते थे। इसीसे ऋग्वेदमें उन्हें दास, दस्यु और असुर बतलाया है । जब ब्राह्मणोंने देखा कि वे लोग लड़भिड़कर भी वश में नहीं आते तो अन्तमें उन्होंने द्रविड़ों के कुछ देवताओंको मान लिया। इससे उन्हें द्रविड़ोंकी सहानुभूति मिली और वे धीरे-धीरे वैदिक आर्योंके परिवर्तित धर्मकी सीमामें आने लगे। ___ अपनी सभ्यताके सर्वोच्च उन्नत कालमें उन द्रविड़ोंका क्या धर्म था, यह तथ्य आज भी अन्धकारमें हैं। किन्तु सिन्धुघाटीसे प्राप्त अवशेषोंके प्रकाशमें वैदिक आर्योंके देवताओं के साथ आधुनिक हिन्दू देवताओंकी तुलना करके यह मान लिया गया है कि शिव और दुर्गा द्रविड़ देवता हैं। तथा प्राचीन द्रविड़ लोग योगकी प्रक्रियासे भी परिचित थे।
१-त्रीहि० इ०, पृ० १२ ! हि० फि० ई० वे०, जि० १, पृ० १ ।
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