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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण १६५ पुराणकी उत्थानिकामें लिखा है कि मैंने अपना यह हरिवंश चरित पूर्वाचार्योंके द्वारा प्रणीत ग्रन्थोंके आधारसे लिखा है। अतः यह आक्षेप, कि जैनोंने अपने पुराण हिन्दू पुराणोंके आधारपर घड़े हैं, अवश्य ही भ्रम पूर्ण, और निराधार है। बल्कि कतिपय ऐतिहासिक तथ्योंके सम्बन्धमें हिन्दू पुराणोंकी अपेक्षा जैन पुराण अधिक विश्वसनीय और विशेष सूचक हैं।' ( भां०, इं० पत्रिका, जि० २३, पृ० १२० )। २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ जैन पुराणोंके अनुसार सौरिपुरमें समुद्रविजयके अरिष्टनेमि नामका एक पुत्र हुआ। उससे प्रथम समुद्रविजयके लघुभ्राता वसुदेवके वासुदेव श्रीकृष्णका जन्म हो चुका था। जरासन्धके आक्रमणके भयसे यादवगण शौरिपुर छोड़कर द्वारकामें जा बसे। उसके पश्चात् युवा होनेपर श्रीकृष्णने जरासन्धका वध किया और दिगविजय करके अर्धचक्रित्व पद प्राप्त किया। इधर नेमिनाथ भी युवा हो चले। __एक दिन राजसभामें सब यादव उपस्थित थे। एक सिंहासन पर श्रीकृष्ण और नेमिनाथ भी विराजमान थे। सभामें वीरताकी चर्चा चल पड़ी और तब सब अपने अपने बलका प्रदर्शन करने लगे। नेमिनाथने भी अपने बलका प्रदर्शन किया, जिससे श्रीकृष्ण. के चित्तमें नेमिनाथकी ओरसे शंका उत्पन्न हो गई। तबतक नेमिनाथ अविवाहित थे और कोई भी कन्या उनका मन आकृष्ट नहीं कर सकी थी। - एकबार वसंत ऋतुम सब यादवगण बन बिहारके लिये गये। अपनी पत्नियोंके साथ श्रीकृष्ण भी इस आनन्दोत्सवमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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