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१६६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका सम्मिलित हुए और वे नेमिनाथको भी साथ ले गये । श्रीकृष्णकी रानियोंने अपने पतिका संकेत पाकर अपने देवर नेमिनाथको घेर लिया। वनक्रीडाके पश्चात् जलक्रीड़ा आरम्भ हुई। जलक्रीडाके अन्तमें नेमिनाथने अपने गीले वस्त्र उतारकर श्रीकृष्णकी रानी जाम्बवन्तीसे धोनेके लिये कहा। इस पर जाम्बवन्ती बिगड़कर बोली, मेरे पति श्रीकृष्ण इतने पराक्रम शाली और वीर हैं, वे भी मुझे ऐसी आज्ञा नहीं देते। ___ अपनी भावजके इस तानेसे क्षुब्ध होकर कुमार नेमिनाथने श्रीकृष्णके पाञ्चजन्य शंखको फूका। उसकी ध्वनि सुनकर श्रीकृष्ण भी विस्मयसे अभिभूत हो गये, और नेमिनाथसे इसका कारण पूछा । तब उन्हें ज्ञात हुआ कि जाम्बवन्तीके तानेसे क्षुब्ध होकर कुमारने ऐसा किया है। इस घटनाके पश्चात् ही श्रीकृष्णने कुमार नेमिनाथके पाणिग्रहण करानेका विचार किया।
और भोजवशकी कन्या राजीमतीके साथ विवाह होना तय किया। विवाहकी तैयारियां हो रही थी। तभी एकदिन नेमि सजधजकर अनेक राजकुमारोंके साथ बनक्रीड़ाके लिये गये । वहाँ एक स्थान पर बहुतसे पशुओंको बंधा हुआ देख कर उन्होंने सारथिसे पूछा कि ये पशु किस लिये बन्द हैं। सारथिने कहा-आपके विवाहमें सम्मिलित हुए मांसभोजी नरेशोंके लिये। ___इस दुःखद संवादने नेमिनाथके मनको द्रवित कर दिया और वे मोक्ष लक्ष्मीके वरणके लिए लालायित हो उठे। समीप स्थित उर्जयन्त ( गिरिनगर ) पर्वतपर जाकर उन्होंने प्रव्रज्या धारण करली । और कैवल्य पद प्राप्त करके मुक्तिका मार्ग बतलाने लगे। बहुतसे मनुष्य उनके अनुयायी और शिष्य बन गये। ___एक दिन वसुदेव बलभद्र और कृष्णके साथ भगवान
नरेशइस दुःखद् वरण के लिएर जाकर
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