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________________ १६४ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका एक बार प्रमुख नागरिकोंने राजा समुद्र विजयसे इस बातकी शिकायत की और समुद्र विजयने वसुदेवको महलसे निकलनेकी मनाई कर दी। एक दिन अवसर पाकर वसुदेव महलसे निकल गया, और देश-देशान्तरोंमें घूमता हुआ एक बार एक युद्ध में सम्मिलित हुआ वहाँसे समुद्र विजय उसे लौटा लाये। लौटनेपर वसुदेवका परिचय कंससे हुआ। कंस उग्रसेनका पुत्र था। दैवज्ञोंके द्वारा कंसको अमंगल सूचक बतलाने पर उग्रसेनने उसका जन्म होते ही परित्याग कर दिया था और एक वणिक्ने उसका पालन किया था। एकबार जरासंधने समुद्रविजयको अपने एक शत्रुपर आकमण करनेकी आज्ञा दी। समुद्र विजयने कंसके साथ वसुदेवको अधीनतामें एक सेना भेजी। कंसने शत्रुको पकड़कर वसुदेवके सामने उपस्थित किया । वसुदेव उसे जरासन्धके पास ले गया। जरासन्धने प्रसन्न होकर मथुराका राज्य तथा अपनी पुत्री वसुदेवको देना चाही। किन्तु वसुदेवने अस्वीकार करते हुए कंसको उस पारितोषिकका अधिकारी बतलाया। और जरासंधने कसके साथ अपनी पुत्रीका विवाह करके उसे मथुराका राज्य दे दिया। ___ भागवत सम्प्रदायके ग्रन्थों में उक्त घटनाओंका संकेत नहीं है। किन्तु इन घटनाओंके वर्णनमें सत्यकी कुछ ऐसी छाप है जो विद्वानों को यह विश्वास दिलानेके लिये प्रेरित करती है कि जैन लोग उक्त घटनाओंकी जानकारीके सम्बन्धमें कोई स्वतंत्र जरिया रखते थे, और यह बात जिनसेनकृत हरिवंश पुराणकी उत्थानिकासे प्रमाणित होती है। जिनसेनने अपने हरिवंश १ देखो भाण्डा० इं० पत्रि०, जि० २३, पृ० १२० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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