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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ही कुटुम्बके बीच ही हुआ था और गुरुवध, मित्रवध और कुल क्षयके भयसे अर्जुन भीत हो उठा था। तब दयाविष्ट
आँखोंमें आंसू भरे अर्जुनसे श्रीकृष्ण बोले-हे अर्जुन ! यह अनार्य लोगोंके द्वारा आचरणीय, अस्वयं ( स्वर्गसे विमुख करने वाला) और आकीर्तिकर (अपयश फैलाने वाला) यह कश्मल तेरे कहाँसे आ गया। ऐसी कायरता ठीक नहीं। इत्यादि । यह निश्चित है कि जैन धर्मके अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर और बौद्ध धर्मके संस्थापक बुद्धके पश्चात् ही महाभारत
और गीता रचे गये हैं। ये दोनों क्षत्रिय थे और दोनोंने सांसारिक सुखोंसे विरक्त होकर संन्यास मार्गको ग्रहण किया था। वैदिक धर्ममें सन्यासका कोई स्थान नहीं था, वह तो केवल क्रियाकाण्डी था। ___ उपनिषदोंके तत्त्व ज्ञानको अपनाने के साथ ही वैदिक धर्ममें भी संन्यासका प्रवेश हुआ । किन्तु यद्यपि अद्वैत ब्रह्मज्ञानके साथ साथ संन्यास धर्मका प्रतिपादन उपनिषदोंमें किया गया तो भी इन दोनोंका नित्य सम्बन्ध वहाँ नहीं बतलाया। अतः यह आवश्यक नहीं था कि अद्वैत वेदान्तको स्वीकार करनेपर संन्यास मार्गको भी अवश्य स्वीकार करना ही चाहिए । उपनिषदोंसे यही व्यक्त होता है। राज्य त्यागकर संन्यास मार्गको अपनानेकी परम्परा प्राचीन कालसे ही क्षत्रियों में प्रचलित रही है। अतः क्षत्रिय अपना कर्तव्य कर्म लोड़कर संन्यास मार्गको न अपनायें उन्हें इसीसे मुक्ति प्राप्त हो जायगी, गीताके द्वारा गीताकारको यही बतलाना अभीष्ट जान पड़ता है। ___ लोकमान्य तिलकने अपने गीता रहस्यमें लिखा है-'जब महाभारतके युद्धमें होनेवाले कुलक्षय और ज्ञातिक्षयका प्रत्यक्ष दृश्य पहले पहल आंखोंके सामने उपस्थित हुआ तब अर्जुन
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